पिछले एक वर्षसे वैदिक उपासना पीठके साधक देहलीमें धर्मप्रसार हेतु भिन्न स्थानोंपर जाया करते थे । प्रसारके मध्य उन्हें यह ज्ञात हुआ कि अनेक गृहस्थके पुत्रको मानसिक रोग है; इससे उनकी माताएं बहुत व्यथित रहती थीं, वहीं पुत्रके पिताको इससे कुछ विशेष प्रभाव नहीं पडता था । वे सबकुछ तटस्थ होकर देखते थे और अपनी धुनमें रहते हैं । माताओंको इस बातका भी कष्ट था कि पुत्रको मानसिक कष्ट या मनोरोग है तो वह कैसे ठीक हो, इस विषयमें घरकी मुखिया अर्थात पिता थोडा बहुत प्रयत्न कर, उसे उसकी स्थितिमें छोड अपनी दैनिंदिन कार्यमें व्यस्त रहते हैं ।
एक देसी कहावत है बाढे पूत पिताके धर्मे और खेती उपजे अपने कर्मे । आजके अधिकांश पुरुषद्वारा योग्य प्रकारसे साधना एवं धर्माचरण नहीं करनेके कारण उनकी संतानोंको कष्ट होता है । किन्तु उनके मन एवं बुद्धिपर स्वयं ही तमोगुणका इतना आवरण होता है कि बच्चोंके कष्ट हेतु क्या योग्य उपाय करना चाहिए, यह उन्हें ज्ञात नहीं होता है । यदि पिताकी सूक्ष्म इन्द्रियां साधनाके कारण जागृत होती तो वे अपने पुत्रकी या संतानोंकी अवश्य ही आध्यात्मिक दोनों ही स्तरोंपर सहायता कर सकते हैं ।
पुत्रको शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कष्ट होना यह तीव्र स्तरके अनिष्ट शक्तियोंके आध्यात्मिक कष्टके लक्षण हैं, इसका भान पालकको इस हेतु उनकी सूक्ष्म इन्द्रियोंका कार्यरत होना आवश्यक होता है ।
मैं आगे जाकर धर्मकार्य करुंगी, यह अनिष्ट शक्तियोंको ज्ञात था; अतः वे बाल्यकालसे ही मुझे भिन्न प्रकारके शारीरिक कष्ट देते थे, हमारे माता-पिता दोनों ही साधक प्रवृत्तिके थे; अतः वे सदैव ही मेरे शारीरिक स्तरके कष्ट दूर करने हेतु चिकित्सकके पास तो ले ही जाते थे, वे साथ ही त्वरित मुझपर आध्यात्मिक उपचार भी करते थे । मैंने अनुभव किया था कि कई बार मुझे शाररिक कष्ट मेरे पिताजीद्वारा मात्र मेरे सिरपर मां दुर्गाकी विभूति लगाकर कुछ क्षण नामजप करनेसे ही दूर हो जाते थे, उसीप्रकार मेरी माताद्वारा दृष्टि उतारना या मेरे लिए कुछ धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ या विशिष्ट व्रत करनेसे भी मेरे स्वास्थ्यमें सुधार हो जाता था । आज जब समाजमें अनेक लोगोंको कष्ट होते देखती और उनके माता-पिता उनके कष्टपर सतही स्तरके उपाय करते हैं तो मुझे ईश्वरके प्रति बहुत कृतज्ञता व्यक्त होती है कि उन्होंने मुझे कैसे उत्कृष्ट अध्यात्मिक स्तरके पालक दिए थे । सभी माता-पिता साधना कर अपने बच्चोंका योग्य प्रकारसे लालन-पालन कर सकें, इस हेतु सभीकी सूक्ष्म इन्द्रियोंका जागृत होना अनिवार्य है । – तनुजा ठाकुर (२९.४.२०१८)
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