हमें किसी व्यक्तिने आश्रमके निमित्त गोशाला हेतु कुछ गायें अर्पण की थीं । हमें उन्हें गोशाला बननेके पश्चात भेजने हेतु बोला था; किन्तु उन्होंने उन्हें पहले ही भेज दिया और कहा कि आपके परिसरमें यदि वृक्ष है तो आप वहां बांध सकते हैं । हम उस समय इंदौर नगरमें रह रहे थे और वहींसे सप्ताहमें तीनसे चार आश्रमके निर्माण कार्यके निरीक्षण हेतु आना-जाना करते थे । इस प्रसंगको हमने ईश्वरेच्छा मानकर गोमाताके आगमनकी अस्थाई व्यवस्था किसी प्रकार की । गोवंशके पदार्पणके पश्चात कालू सिंह नामक एक श्रमिक जो अपनी पत्नीके साथ आश्रम परिसरमें रात्रिमें सुरक्षाकर्मीके रूपमें कार्य करते थे एवं दिनमें मिस्त्री का कार्य करते थे, वे गोवंशको बिना मेरे कुछ बोले बडे प्रेमसे देख-रेख करने लगे । उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि मैं गोवंशकी अधिक सेवा कर रहा हूं तो मुझे इसके लिए और पैसे दें ! यद्यपि मैंने उन्हें मात्र गोसेवा व रात्रिकी सुरक्षा हेतु ही सेवा देने हेतु कहा; क्योंकि उनकेद्वारा सब करना सम्भव नहीं था । सभी गायोंको वे समयपर चारा देते, वहांकी स्वच्छता करते और सबसे महत्त्वपूर्ण बात सबसे प्रेम करनेका प्रयास करते थे । इससे मैं निश्चिन्त होकर इंदौरमें रह पाई । यद्यपि जबसे गोमाता आश्रममें रहने लगीं, हम एक रात्रि मानपुरके निर्माणाधीन परिसरके एक कक्षमें रहते थे और एक दिवस इंदौरमें रहते थे । मैं गोमाताको कोई असुविधा या कष्ट न हो इस हेतु सारी व्यवस्थाको देखते रहती थी और एक माहमें सबसे पहले गोशालाका ही निर्माण किया एवं मार्च २०२० से एक कार्यकर्ता मात्र उनके लिए ही रखने लगी जिसका नाम राम सिंह था । कालूने राम सिंहको सब अच्छेसे सिखाया, जबतक गोमाता उनसे परिचित नहीं हुई तबतक दूध निकालनेकी सेवा भी वही करता था ।
यदि राम सिंहको कभी बाहर जाना हो तो मुझे कभी सोचना नहीं पडा कि अब कौन सेवा करेगा ? कालू या उनका पुत्र या कोई और श्रमिक स्वयंप्रेरित होकर गोमाताकी सेवा कर लेते थे ।
इस मध्य दो गोमाताओंने बछडियोंको भी जन्म दिया तब भी मुझे कुछ सोचना नहीं पडा । कालू व राम सिंहने सब उत्तरदायित्व ले लिया ।
एक दिवस मुझे ज्ञात हुआ कि राम सिंह कुछ कारणवश अब रात्रिमें निवास नहीं कर सकता है; इसलिए किसी और गोसेवकको रखना होगा । किन्तु एक और श्रमिक दिलीपको उसने बताया होगा और उसने किसी और इस सेवा हेतु सिद्धकर मुझे बताया । अर्थात नवम्बर २०१९ से आजतक कभी यह नहीं चिन्ता हुई कि गोसेवा कौन करेगा ? अब रामप्रसाद नामक एक श्रमिक यह सेवा करता है ।
मैंने अनेक बार ऐसे सुना था कि गोसेवक नहीं मिलते हैं; किन्तु आश्रममें जो श्रमिक सेवारत हैं, उन्होंने स्वयंसे ही गोमाताकी सेवा ले ली ।
सेवाके प्रति यह उत्तरदायित्वका भाव मैंने शिक्षित साधकोंमें भी नहीं पाया है । एक साधक यदि सेवा नहीं कर सकते हैं तो पर्यायमें यह सेवा कौन करेगा ? यह सब मुझे उत्तर भारतमें शिक्षित साधकोंको बार-बार सिखाना पडता है । सभी साधक इन अल्प शिक्षित श्रमिकोंसे बोध लें ! ऐसी मेरी अपेक्षा है ।
Leave a Reply