इंदौर स्थित मानपुरके उपासनाके आश्रममें कार्यरत श्रमिकोंमें साधकत्वके लक्षण जाग्रत होना (भाग-३)


पिछले पांच माहसे हमने आश्रममें पूर्णिमाके दिवस सत्यनारायण पूजा, हवन, कन्यापूजन एवं भण्डारेका आयोजन आरम्भ किया है । साथ ही मासिक चतुर्दशी अर्थात मासिक शिवरात्रिके दिवस परशुराम जन्मस्थलीमें जनकेश्वर शिवलिंगपर अष्टाध्यायीद्वारा रुद्राभिषेक भी करना आरम्भ किया है एवं अमावस्याको, आनेवाले आपातकालमें साधकोंके ऊपर महालक्ष्मीकी कृपा रहे; इसलिए श्रीसूक्तके २५६ पाठ एवं उसके दशांशका तर्पण, मार्जन एवं हवन भी करना आरम्भ किया है । इन सभी अनुष्ठानोंमें प्रातः सात बजसे रात्रि के नौ बजेतक सभी कार्यकर्ता आनन्दपूर्वक सेवा देते हैं । वैसे तो वे आठ घण्टेकी दैनिक सेवा देते हैं; किन्तु कार्यक्रमके समय वे १२ से १४ घण्टेकी सेवा देते हैं । जब पहली बार ऐसा हुआ तो हमने उन्हें कहा कि आपलोगोंको ऐसे कार्यक्रममें हम दोगुना दिहाडी दे दिया करेंगे; तो सबने कहा, “यह तो हमारी सेवा है, हम इसके पैसे नहीं लेंगे ।” मुझे यह सुनकर बहुत आश्चर्य व आनन्द भी हुआ ।
एक बार हमारे श्रीगुरुने कहा था कि एक लखपतिके लाखों रुपयेसे अधिक महत्त्व किसी निर्धनके सौ रुपयेका होता है ।
कार्यक्रमके दिवस १२ से १४ घण्टेकी सेवा करनेके पश्चात वे अगले दिवस पुनः अपने दैनन्दिन कार्य हेतु समयपर उपस्थित हो जाते हैं ।
हमारे श्रमिक वर्गकी संख्यामें वृद्धि हो रही है और वे ही अपने जैसे सदस्योंको ढूंढकर लाते हैं ।
मुझे इन अल्प शिक्षित एवं सीमित आयके कार्यकर्ताओंसे बहुत कुछ सीखने हेतु मिल रहा है । मैं समय-समयपर आपसे वह भी साझा करूंगी ।



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