तुलसी कण्ठी मालासे सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य


कृष्णप्रिया तुलसी जीवका परम कल्याण करनेवाली हैं । जिनके कण्ठमें तुलसीजी होती हैं, वे यमका त्रास नहीं पाते । ऐसे साधक-जीव गोलोकको प्राप्त होते हैं । जन्म-मरणके चक्रसे छूट जाते हैं और अन्ततः नित्यलीलाको प्राप्त करते हैं ।

कण्ठमें तुलसी धारण करते हुए स्नान करनेवाले मनुष्यको सम्पूर्ण तीर्थोंका फल प्राप्त होता है । जिस प्रकार सौभाग्यवती नारीका परम शृंगार कुमकुम, मङ्गलसूत्र, बिछिया इत्यादि होता है और जिस नारीकी मांगमें कुमकुम व गलेमें मङ्गलसूत्र होता है तो इन्हें उसके सौभाग्यका प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार माथेपर तिलक और कण्ठमें तुलसी कण्ठी माला, वैष्णवके सौभाग्य, समर्पण व सान्निध्यके प्रतीक हैं । जो मनुष्य कृष्णको अपना सर्वस्व मानता है, वह तुलसी कण्ठी अवश्य धारण करता है ।

तुलसी धारण करनेके नियम :
अ. तुलसी माला धारण करनेवाले मनुष्यको सात्त्विक भोजन करना चाहिए अर्थात मांसाहारका त्याग करना चाहिए । मांसाहारसे कामोत्तेजनाको बढावा मिलता है जिससे भक्तिमें बाधा उत्पन्न होती है; इसलिए यह निषेध है ।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, संन्यासी अथवा वानप्रस्थ, चारों ही प्रकारके आश्रममें निवास करनेवाले मनुष्य इसे सरलता व सुगमतासे धारण कर सकते हैं ।

आ. किसी भी आयुमें, स्त्री हों या पुरुष, चाहे उनकी दीक्षा हुई हो अथवा नहीं, वे तुलसी माला धारण कर सकते हैं ।

इ. सबसे महत्त्वपूर्ण नियम, तुलसी माला धारकको अधिकसे अधिक नामजप करना चाहिए । नामजपके सम्बन्धमें सिद्धान्त जान लें ! यदि आपको गुरुमन्त्र मिला हो तो उसे ही जपना चाहिए । यदि नहीं मिला हो तो अपने कुलदेवताका जप करना चाहिए और यदि कुलदेवताका नाम ज्ञात न हो तो अपने इष्ट देवताका जप करना चाहिए अर्थात चाहे किसीका भी करें; किन्तु जप अवश्य करें । जैसे-जैसे आपके भावमें वृद्धि होगी, आपको योग्य नामजप बतानेवाला स्वतः ही मिल जाएगा ।

ई. परिवारमें जन्म अथवा मृत्युके समयमें भी तुलसी मालाका त्याग नहीं करना चाहिए अर्थात इसे अपनी देहसे पृथक नहीं करना चाहिए ।

ध्यान दें कि मनुष्य जब मृत्यु शय्यापर होता है तब अन्त समयमें उसके मुखमें भी तुलसी दल और गंगाजल ही डाला जाता है । इसी प्रकार जब कण्ठमें तुलसीकी माला धारण की हुई होती है तो वह एक कवचका कार्य करती है ।
कण्ठमें तुलसी धारण करनेसे प्रत्येक क्षण भगवानको तुलसी दल अर्पण करनेका फल प्राप्त होता है ।

तुलसीके नियम ही सात्त्विकताकी ओर बढनेवाले पग हैं, जिससे सच्चा कल्याण होता है । तुलसी विष्णु तत्त्वको आकर्षित करती है; अतः सकारात्मक ऊर्जाका स्रोत है तथा प्रत्येक प्रकारके वास्तुदोषको समाप्त करती है । तुलसी वायु प्रदूषणको रोकनेमें भी सहायक है; इसलिए अधिकसे अधिक तुलसी रोपण करनी चाहिए । जिस आंगनमें तुलसी सिञ्चित होती हैं वहां सदैव कृष्णका वास रहता है ।



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