मनु, चाणक्य व बृहस्पतिद्वारा विकसित भारतीय न्याय व्यवस्था ही भारतके लिए योग्य, उच्चतम न्यायालयके न्यायाधीशका प्रतिपादन


१६ जनवरी, २०२२
                 अखिल भारतीय अधिवक्ता महासंघकी राष्ट्रीय परिषदमें बोलते हुए उच्चतम न्यायालयके न्यायाधीश अब्दुल नजीरने कहा कि विधानके विद्यार्थियोंको पूंजीवादी भूमिकाको त्यागकर मनु, चाणक्य व बृहस्पतिद्वारा विकसित पुरातन न्याय व्यवस्थाको आत्मसात करनेकी आवश्यकता है । उन्होंने इसके निम्न कारण प्रस्तुत किए :
१.  भारतमें लागू पश्चिमी न्यायशास्त्र मात्र सत्ताधारी पक्षको उपलब्ध है, सामान्य व्यक्तिको नहीं । प्राचीन न्यायशास्त्रमें कोई भी व्यक्ति किसी भी बातके विरुद्ध न्याय मांग सकता है ।
२. विधानका अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियोंको प्राचीन न्यायप्रणालीका अध्ययन अनिवार्य रूपसे करवाना चाहिए । वहां राजा भी विधानके समक्ष नतमस्तक होते थे ।
३. पश्चिमी विचार अधिकारोंपर तो भारतीय विचार दायित्वपर आधारित हैं ।
४. प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्थामें अधिक दायित्व स्वीकार करनेवालेको अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं । अधिकार, यह दायित्व निभानेके साधन थे ।
५. पश्चिमी न्यायशास्त्रमें दायित्वको प्रधानता न देकर अधिकारोंको प्रधानता दी जाती है । इसका विवाह जैसी सामाजिक संस्थापर दुष्प्रभाव होता है ।
६. भारतीय न्यायशास्त्र अनुसार विवाह एक सामाजिक कर्तव्य है । पश्चिमी सभ्यतामें इसे सन्धिकी भांति देखा जाता है । बढते विवाह विच्छेद, इसको कर्तव्य न समझनेका दुष्परिणाम है ।
       न्यायाधीश अब्दुल नजीरजीका वक्तव्य प्रशंसनीय व विचार करने योग्य है । भारतीय न्यायप्रणालीमें उचित परिवर्तनकर ऐसे विचारोंका अनुसरण हो तो न्यायव्यवस्थाको बल मिलेगा, साधारण व्यक्तिको सहज न्याय उपलब्ध होगा व समाजमें योग्य सुधार होगा । – सम्पादक, वैदिक उपाासना पीठ
 


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