अलौकिक प्रेम अर्थात प्रीति :


अलौकिक प्रेम अर्थात प्रीति :

ईश्वर एवं भक्तका प्रेम अलौकिक होता है | यद्यपि सकाम भक्तकी ईश्वरसे कुछ अपेक्षा होती है परंतु निष्काम भक्त मात्र ईश्वरसे प्रेम करने हेतु प्रेम करता है, प्रेम करना उसका मूल धर्म होता है और ऐसे साधकको सर्वश्रेष्ठ भक्त कहा गया है | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है | ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ अर्थात जो मेरी निष्काम भक्ति करता है उसके मैं पूर्ण उत्तरदायित्वका निर्वाह करता हूं

ईश्वरसे निष्काम भक्ति करने वालेकी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गतिसे होती है और सकाम भक्तकी आध्यात्मिक प्रगति अत्यंत अल्प गतिसे या नगण्य समान होती है क्योंकि उसकेद्वारा की गयी साधना उसकी इच्छाओंको पूर्ण करनेमें समाप्त हो जाती है | परंतु जैसे जैसे उसकी इच्छायें पूर्ण होती है और उसे अनुभूति आती है वैसे-वैसे उसकी भक्ति बढती है और ईश्वरके प्रति उसका निष्काम प्रेम बढने लगता है |

गुरु-शिष्य का प्रेम निष्काम पवित्र और अपेक्षा रहित होता है | वस्तुतः शिष्यको तो अपनी आध्यात्मिक प्रगति की भी अपेक्षा होती है और सद्गुरु तो प्रेमकी मूर्ति होते हैं और शिष्यके प्रति उनका प्रेम पूर्णत: निरपेक्ष होता है |
यह संसार ईश्वरका निर्गुण स्वरूप है इससे निरपेक्ष प्रेम किए बना सायुज्य मुक्ति (अर्थात सर्वश्रेष्ठ मुक्ति असंभव है ) | अतः साधकने प्रीति इस दिव्यगुणको आत्मसात करनेका प्रयास करना चाहिए |
प्रीतिके तत्त्वको आत्मसात करने हेतु सर्वप्रथम अपने गुरुबंधुसे प्रेम करनेका प्रयास करना चाहिए | सर्वप्रथम जिनके साथ सेवा करनेमें आनंद आता हो उनके साथ सेवा करना चाहिए | उसके अगले चरणमें जिनके साथ सेवा करनेमें आनंद नहीं आता उनके साथ सेवा करना चाहिए और उस सह-साधकके साथ सामंजस्य स्थापित करनेमें जो दोष या अहंके लक्षण अडचन निर्माण करता हो उसे सतर्क होकर दूर करनेका प्रयास करना चाहिए | उसे अगले चरणमें जो अन्य गुरुको मानते हों उनसे निरपेक्ष प्रेम करना चाहिए और तत्पश्चात जो किसी गुरु या संप्रदायसे न जुडे हों परंतु साधक हों उनसे जुडाव निर्माण करना चाहिए | और अंतमें जो साधना नहीं करते अर्थात सामान्य व्यक्तिसे प्रेम करनेका प्रयास करना चाहिए | जब सम्पूर्ण मानव मात्रसे प्रेम करना साध्य हो जाये तब जानवर, वनस्पति एवं अचर जगतसे प्रेम करना चाहिए | संत चर एवं अचर सभीसे प्रेम करते हैं अतः वे ईश्वरकी प्रचीति सर्वत्र ले सकते हैं | संतोंमें प्रीतिका तत्त्व अत्यधिक होता है अतः सर्व सामान्य व्यक्ति उनके प्रति सहज ही आकर्षित हो जाते हैं | प्रीतिका प्रमाण जितना अधिक होता है उनमें आकर्षण भी उतना ही अधिक होता है | गोपियोंने प्रीतिके बल पर सायुज्य मुक्ति प्राप्त की थी |



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