जैसा कि मैंने बताया था कि सितम्बर १९९० से धर्म और अध्यात्म जानने और सीखनेकी तीव्रता बढती चली गयी और उसके साथ ही पारलौकिक जगतकी अनुभूतियां भी, जिसने मेरी ईश्वरीय अनुसन्धानकी प्रक्रियाको गति दी | इसी सन्दर्भमें एक संस्मरण बताती हूं –
हमरे पिताके एक मित्र थे और वे रेल्वेमें चाकरी(नौकरी) करते थे एवं पिताजी के अनुसार वे एक सिद्ध पुरुष थे | जैसे हम होते हैं वैसे ही लोगोंसे हमारी मित्रता भी होती है मद्यपिको मद्यपि, जुआरीको जुआरी और भक्तको भक्त स्वतः ही मिल जाते हैं | अंग्रेजीमें भी एक कहावत है “birds of same feather flock together”, हमारे पिताजी आध्यात्मिक प्रवृतिके थे, यद्यपि वे बहुत मिलनसार थे; किन्तु उनके गिने-चुने मित्र ही थे; परन्तु सभी आध्यात्मिक थे उनके सभी मित्रोंसे भी मुझे बहुत कुछ सीखने हेतु मिला | इनमेंसे एक मित्रसे उनकी आध्यात्मिक स्तरपर अत्यधिक घनिष्ठता थी और वे दोनों आपसमें धर्म और अध्यात्म विषयक चर्चा किया करते थे | समय-समय उनके ये मित्र हमपर होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके आघातके निवारण हेतु आध्यात्मिक उपाय भी किया करते थे | आज समझमें आता है कि भविष्यमें अल्प प्रमाणमें ही सही, किन्तु हम धर्मकार्यमें संलग्न होनेवाले थे; अतः अनिष्ट शक्तियां हमें बाल्यकालसे ही ऐसे कष्ट देती थीं जो होती तो शारीरिक थी; किन्तु जिनका निराकरण चिकित्सकीय उपायसे नहीं हो पाता था; परन्तु आध्यात्मिक उपायका तुरंत ही परिणाम दिखाई देता था | यह सब देख कर जैसे-जैसे मैं बडी होती गई, अध्यात्म विषयकी ओर मेरी जिज्ञासामें भी वृद्धि होती गई |
ख्रिस्ताब्द 1992 में अचानक मेरी मां अत्यधिक अस्वस्थ रहने लगीं, दो माह वे चिकित्सालयमें भी भर्ती रहीं | एक दिन चिकित्सकने सर्व परीक्षणके पश्चात् बताया कि उन्हें कर्करोग(कैंसर) है | जब हमने यह सुना तो कुछ क्षणोंके लिए मेरे नेत्रोंके आगे अंधेरा छा गया | मैं भाई- बहनोंमें सबसे बडी थी; अतः इस बातका मुझपर अधिक प्रभाव पडा |
अगले दिन पिताजीके वे मित्र (जिन्हें पिताजीने बताया था कि वे सिद्ध पुरुष हैं) , अनायास हमारे घर पहुंचे, उस समय हम भाई-बहन अकेले ही घरपर थे | मैं उन्हें देखकर रोने लगी, मुझसे कुछ भी कहा ही नहीं जा रहा था, कुछ समय पश्चात् उन्होंने मुझसे सारी बातें पूछीं और सब जानने के पश्चात् कुछ क्षणोंके लिए नेत्र बन्द किए और कहने लगें “नहीं बिटिया, उन्हें कर्करोग नहीं हुआ है; वे शीघ्र ही पूर्णत: स्वस्थ हो जाएंगी” |
मैं यह सुन थोडी आश्चर्यचकित हुई; परन्तु मैं चाहती थी कि कोई कहे कि मेरी मांको कुछ नहीं हुआ और वे स्वस्थ हो जाएंगी जबकि बायोप्सीमें उनके कर्करोग होनेका प्रमाण मिल चुका था | उन्होंने मुझे स्वच्छ कांचके बोतलमें जल लाने हेतु कहा | मैंने कांच एक बोतलमें जल भरकर, उनके हाथमें थमा दिया | उन्होंने १५ से २० सेकंड उस बोतलको हाथमें लेकर, कुछ मन्त्र पढे और मुझे दे दी और कहा कि ४० दिवस तक एक चम्मच मांको पिलाना और हमारी कुलदेवीके चित्रकी ओर हाथ दिखाकर बोलें “जहां ये हैं, वहां ऐसे महारोग नहीं हो सकते, वे पूर्णत: स्वस्थ हो जाएंगी, तुम चिंता न करना ” | मैंने उनकी आज्ञाका पालन कर प्रतिदिन मांको चिकित्सालयमें एक चम्मच, वह अभिमन्त्रित जल पिलाती रही, जब मैंने मांको जल पिलाना आरम्भ किया था तो वे अर्धचेतन अवस्थामें ही रहती थी | ३० वें दिन पिताजी और नानी प्रातःकालसे चिकित्सालयमें थे और वे मांको वह जल पिलाना भूल गए |
जब संध्या समय मैं पहुंची तो मांके निकट पहुंचकर उन्हें स्पर्श किया तो वे अर्धचेतन अवस्थामें ‘पानी-पानी’ कर रही थीं | उनकी स्थितिमें कोई सुधार नहीं थी | मैंने सामान्य जल चम्मचसे लेकर, मांको पिलाना चाहा; परन्तु उस जलको वे मुखसे बाहर फेंक दे रही थीं | मैंने मांको चार-पांच बार जल पिलाना चाहा; परंतु वे ‘पानी-पानी’ कर तो रही थीं, पी नहीं रही थीं | मैं रोने लगीं और कहने लगी “ पानी तो दे रही हूं, पीनेका प्रयास तो कीजिये,” परंतु मांका पानी-पानीका रट चालू था | तभी मैंने मांके अचेतन दाहिने हाथकी उंलगीको मांके बिछावनके पास अलमारीमें रखे अभिमंत्रित जलकी ओर संकेत करते हुए देखा | मैंने नानीसे पूछा तो उन्होंने कहा “आज वे और पिताजी दोनों, उनको वह जल पिलाना भूल गए थे | मैंने मांको प्रेमसे वह जल पिलाई और वे शांत होकर सो गईं |
अगले दिन जब मैं महाविद्यालयसे चिकित्सालय गई तो एक चमत्कार पाया मां, उठकर बैठी हैं और सबसे धीमें स्वरमें हंस कर बात कर रही हैं, मैंने मांकी स्थितिमें सुधार देख, उनका आलिंगन कर रोने लगी | इतने दिनों पश्चात् मांको थोडा स्वस्थ देख इतनी आनन्दित थी कि मैं रो पडी |
उस दिवस मांने जो अपनी अनुभूति बताई वह बताती हूं | मांने कहा कि पिछले दिवस एक संत सरीखे लंबी दाढीवाले व्यक्ति उनके स्वप्नमें आकर अभिमंत्रित जल लेनेका उन्हें स्मरण दिला रहे थे | मैं सब समझ गई कि इसलिए पिछले दिन मां ‘पानी-पानी’ का रट लगा रही थीं और उसके पश्चात मांकी स्थितिमें आश्चर्यजनक सुधार हुआ और उन्हें चिकित्सालयसे चार दिनमें ही घर भेज दिया गया | मुझे आश्चर्य हो रहा था कि दो माहसे अर्धचेतन अवस्थामें जो मां सोयी रहती थी, वे सहजतासे चल पा रही थीं, हंसबोल पा रही थीं, सामान्य रूपसे भोजन ग्रहण कर पा रही थी; परंतु चिकित्सकने शल्यक्रिया अति शीघ्र करनेको कहा था; अतः उन्हें शीघ्र ही दूसरे नगर ले जाया गया जहां एक चिकित्सकसे उनका शल्यक्रिया होना था | मैंने देखा कि मां मानसिक रूपसे किंचित मात्र भी घबराई हुई नहीं थीं और उन्हें तब तक हमने बता दिया था कि उन्हें कर्करोग है | उनकी शल्यक्रिया उस जलके पीनेके ३९ वें दिन था | और आश्चर्य यह कि चिकित्सकको उनके शरीरके भीतर कोई घाव नहीं मिला, कर्करोगकी बात तो छोड ही दें | चिकित्सकने कहा “ जिस जांचघरसे इनका जांच हुआ है आप उनपर वैधानिक कार्यवाही (कानूनी कारवाई) करें, इन्हें कोई कष्ट नहीं है |” उनका जांच कोलकाताके एक अत्यधिक प्रसिद्ध जांचघरमें हुआ था; अतः चूककी संभवना नगण्य थी और वैसे भी वे छह माहसे अस्वस्थ थीं, यह तो हम सब जानते ही थे | पिताजीने जब दूरभाष कर सब बताया तो मुझे उस जलके प्रति, पिताजी के उस मित्रके प्रति और भगवानजीके प्रति इतनी कृतज्ञता हुई कि मैं आपको बता ही नहीं सकती |
मेरी नानी भी पिताजीके साथ गई थीं, उन्हें उस जलका लाभ जाननेके पश्चात् उससे मोह हो गया | वे सोचने लगीं यह इस जलका चमत्कार है; अतः वापस अपने नगरमें जानेपर जो भी कर्करोगी होंगे, उसे देंगे | आधे घंटे पहले उनके मनमें यह विचार आया और आधे घंटे पश्चात् उनके साडीके पल्लूसे लगकर वह कांचकी बोतल पास ही गिर कर टूट गयी | उस समय आवलेका तेल जिस बोतलमें आता था, वह इतना सशक्त होता था कि कई बार गिरनेसे भी नहीं टूटता था | नानी समझ गईं कि वह मात्र मांके लिए था और उस दिन ४० दिन पूरे हो गए थे | मां स्वस्थ हो कर घर आ गयीं और एक दिन पुनः चाचाजी आए, मैं तो उनकी बाट जोह रही थी, मैंने उन्हें मन:पूर्वक कृतज्ञता व्यक्त की | वे कहने लगे, “बिटिया, मैंने कुछ नहीं किया, सब ईश्वरने किया और आप सबकीकी श्रद्धा और भक्तिने किया है |”
मुझपर समाज सेवाका भूत सदैव ही सवार रहता था, मैंने झटसे कहा, “चाचाजी अब इस महारोगसे इस नगरमें किसीकी मृत्यु नहीं होगी, आप सभीको यह जल दे दीजिएगा |” मेरी इस बातको सुनकर वे त्वरित उठ खडे हुए, उन्होंने कहा “ना, ना, बिटिया, यह तो सम्भव नहीं, तुम्हारी मांको यह कष्ट प्रारब्धवश नहीं, अनिष्ट शक्तियोंके करण हुआ था, हमें किसीके प्रारब्धमें हस्तक्षेप करनेकी आज्ञा नहीं है |”
मुझे उस समय उनकी बात समझमें नहीं आई और न ही अच्छी लगी; परन्तु वे और कुछ बताना नहीं चाहते थे; अतः मांको नमस्कार कर चले गए | मेरी जिज्ञासा वैसीकी वैसी ही रह गई | मैं मात्र इस प्रक्रियाका कारण ही नहीं जानना चाहती थी अपितु मैं भी इसप्रकार दूसरोंकी सहायता कर सकूं, यह भी मेरी इच्छा उस समय निर्माण हुई थी; किन्तु चाचाजीसे इस सम्बन्धमें कभी पुनः कोई बात नहीं हो पाई, उन्होंने हमपर बहुत बडा उपकार किया था; अतः मैं उन्हें किंचित मात्र भी व्यथित नहीं करना चाहती थी; अतः मेरी यह इच्छा मनमें ही रह गई |
किन्तु मेरे सर्वज्ञ श्रीगुरुने मेरे बिना बताए मेरी इस जिज्ञासाको शान्त ही नहीं किया अपितु मुझे उसकी पूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रियाका सैद्धान्तिक और प्रयोगिक भाग ‘सूक्षमसे’ सिखाया भी और आज उपासनाके अनेक अनिष्ट शक्तिसे पीडित साधकोंको या उपासनाके आध्यत्मिक उपाय केन्द्रके अनेक अनिष्ट शक्तियोंसे पीडित व्यक्तियोंको, जब भी आवश्यकता अनुसार अभिमन्त्रित कर जल देती हूं तो उन्हें भी अनेक अनुभूतियां होती हैं एवं गुरुकृपासे अनेक लोगोंके असाध्य रोग जो अनिष्ट शक्तियोंके कारण थे, वे दूर भी हुए हैं | वस्तुत: मुझमें यह शक्ति आ गई है, यह भी एक साधकमें प्रकट अनिष्ट शक्तिने मुझे बताया, इस सम्बन्धमें आपको विस्तारसे किसी और लेखमें बताउंगी और मैं तो अभिमंत्रित भी नहीं करती हूं, मात्र अपने श्रीगुरुका एक क्षण स्मरण कर जलको दे देती हूं; क्योंकि हमारे श्रीगुरु उस आध्यात्मिक ऊंचाईपर हैं कि उनके एक क्षणके स्मरणसे ही सामान्य जलमें आध्यात्मिक उपायकी क्षमता निर्माण हो जाती है, ऐसा मेरा ढृढ विश्वास है | (४.३.२०१४)
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