धर्म प्रसारकी सेवा


धर्म प्रसार की सेवा के मध्य कुछ साधकोंसे बातचीत करते समय वे अत्यंत सहजता से कहते हैं कि मेरा अहं शून्य है, यदि आपका अहं शून्य हो जाएगा तो इस संसार में एक सामान्य व्यक्ति समान जीवन व्यतीत करना असंभव हो जाएगा, उस अवस्था में न शरीर की सुध -बुध रहती है न अपने आसपास की ! उच्च कोटिके संत भी एक दो प्रतिशत अहं धारण कर धर्म कार्य करते हैं क्योंकि पूर्ण अद्वैत में रहकर कार्य करना असंभव होता है तभी तो रामकृष्ण परमहंस को स्वामी विवेकानंद की आवश्यकता हुई, २ से ५% यदि अहं हो तो अनेक उच्च कोटिके जीवको आपके सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमानता, सर्वव्यापकता के गुण की अनुभूति होने लगती है और ऐसे संत पूरे ब्रह्मांड में मात्र २२ की संख्या में हैं !!!!! कृपया नाम न पूछें !! आम खाये गुठली पर कम ध्यान दें !! 🙂  -तनुजा ठाकुर



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