१. सत्संग है धर्म और अध्यात्शास्त्रकी जानकारीप्राप्त करनेका महत्त्वपूर्ण माध्यम
सत्संगमें जानेपर हमें धर्म और अध्यात्मकी जानकारी मिलती है जो जानकारी हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलती | हमारे देशमें भी धर्मनिरपेक्षताकी आडमें हमें धर्मशिक्षण विद्यालय या महाविद्यालयमें नहीं दिया जाता है; फलस्वरूप हम व्यावहारिक रूपसे कितने भी शिक्षित हों, अध्यात्ममें धर्मशिक्षणके अभावमें हम अत्यल्प जानकार होते हैं | सत्संगके माध्यमसे हमें धर्मशिक्षण मिलता है और अध्यात्म सीखनेके अधिकारी साधक एवं संतसे हमें आध्यात्मिक मार्गपर चलनेकी जानकरी मिलती है |
२. सत्संग शंका समाधान कर, ढोंगी गुरुसे बचाता है
जो भी कुछ हमने कहीं सुनी होती या पढी होती है उसीके आधारपर हम धर्मपालन करते हैं और योग्य समाधान न मिलनेपर कई बार ढोंगी तांत्रिक या ढोंगी गुरुके जालमें फंस जाते हैं | कई लोग तो अध्यात्मके बारेमें सुनी-सुनायी बातोंके कारण या पूर्वाग्रहके कारण इस मार्गकी ओर जानेसे ही डरते हैं; अतः सत्संगमें जाने सारी शंकाओंका समाधान हो जाता है ओर हम आनंदपूर्वक धर्माचरण कर अध्यात्मके मार्गका अनुसरण करते हैं |
३. मनकी एकाग्रता साध्य करनेका सर्वोत्तम स्थल है सत्संग
मैं अपने प्रथम सत्संग की अनुभूति बतातीं हूं, जब मार्च १९९७ में पहली बार सनातन संस्थाद्वारा आयोजित सत्संगमें गयी तो सत्संगमें बैठते ही मेरा मन पूर्णतः निर्विचार हो गया | मैं बीससे पच्चीस मिनट ध्यान लगानेका प्रयास करती थी तब मुझे कुछ मिनटके लिए निर्विचार अवस्थाकी अनुभूति होती थी ओर सत्संगमें खुले आंखोंसे ही अर्थात् जागृतावस्थामें ही निर्विचार अवस्थाके अनुभूति हुई | इससे मुझे सत्संगका महत्त्व समझमें आया |
संत मीरा बाईको भी भान हो गया था कि भगवान श्रीकृष्णसे पूर्ण एकरूपता हेतु सत्संगमें जाकर समष्टि साधना करनी होगी; अतः सबका विरोध सहकर भी वे सत्संगमें जाती थी !
४. सत्संगमें समविचारी साधकोंका साथ साधना हेतु होता है पोषक
जैसे मद्यपि के साथ रहनेवाले न चाहकर भी मद्यपान करने लगते हैं उसी प्रकार सत्संगके साधकोंके सन्निध्यमें साधनाको योग्य दिशा और गति मिलती है और समविचारी व्यक्तिका साथ मिलनेसे हमें आनंद भी मिलता है | एक साधककी भावना, भाव और अनुभूतिका साधारण सांसारिक व्यक्ति उपहास करता है; अतः सत्संग साधकके लिए एक पोषक वातावरण होता है, जहां अपने गुरु-बंधु या सह साधकके संग अपने मनोभावको प्रकट कर, वह आनंद अनुभव करता है |
५. सत्संगमें आध्यात्मिक प्रगति करने हेतु प्रेरणा मिलती है
जिस प्रकार रुग्णालयमें सामूहिक उपचार पद्धति ( अर्थात ग्रुप थेरपी ) के माध्यमसे रोगी एक दूसरेको ठीक हो घर जाते देख, उनमें शीघ्र स्वस्थ होने के लिए स्पर्धा निर्माण होती है, उसी प्रकार सत्संगमें अन्य साधकोंको अध्यात्ममें प्रगति करते देख साधकोंमें भी अध्यात्मिक प्रगति करनेका उत्साह और सकारात्मक प्रतिस्पर्धा बढ जाती है और साधक साधना पथपर द्रुत गतिसे अग्रसर होने लगता है |
६. सत्संगमें आध्यात्मिक कष्ट स्वतः ही दूर हो जाते हैं |
सत्संग लेनेवालेका स्तर जितना अधिक होता है, उतना ही अधिक चैतन्य सत्संगमें निर्माण होता है | सत्संग यदि उच्च कोटिके संतद्वारा संकल्पके माध्यमसे आयोजित किया गया हो या वह उच्च आध्यात्मिक स्तरके साधकद्वारा लिया जा रहा हो तो साधकके साथ रिद्धि-सिद्धियां चलती हैं, उनके सेवा करने हेतु अतः कई बार सत्संगमें उपस्थित साधकोंके कष्ट वहीं समाप्त हो जाते हैं | रिद्धि-सिद्धियां अपने स्वामीको प्रसन्न करनेके लिए भावसे युक्त साधकको अनुभूति प्रदान करती हैं |
इस सन्दर्भमें एक अनुभूति बताती हूं | वर्ष २००० में डॉ. पांडुरंग मराठेका सत्संग धनबादमें आयोजित किया गया था | एक साधक श्रीमती नारंग जो एक वर्षसे साधनारत थी, वे भी सत्संगमें उपस्थित थीं | उस साधकके सिरमें सदा ही वेदना होती रहती थी और ऐसे लगता था कि जैसे किसीने कई किलोका भार उनके सिरपर रख दिया हो | इस कष्टके बारेमें उन्होंने मुझे दो तीन बार बताया भी था और उनका कहना था कि उन्हें उच्च रक्तदाब (हाई BP ) के कारण ऐसा होता है | उनके घरमें तीव्र स्तरका आध्यात्मिक कष्ट था | जब श्रीमती नारंग सत्संगमें बैठीं थीं तब उनके सिरमें तीव्र वेदना और भारीपन था | सत्संग समाप्त होनेके पश्चात श्रीमती नारंगने बताया कि सत्संगके समय उन्हें अत्यधिक पसीना आया और सत्संगके पश्चात उनके सिरकी वेदना और भारीपन पूर्णतः समाप्त हो गया | और उस दिन के पश्चात उन्हें उस प्रकारके कष्ट कभी भी नहीं हुए | यह है सत्संगका महत्त्व |
७. सत्संगसे वातावरणमें भाईचारा और प्रेममें वृद्धि
झारखण्डमें मैं अपने पिताजीके पैतृक गांवमें मैं २००८ से २०१० इस मध्य रही थी | नवम्बर 2009 में हमने वहां सत्संग आरम्भ की | उस सत्संगमें नियमित आनेवाले एक युवा साधक श्री अभिषेक ठाकुरने एक दिन कहा कि गांवमें सत्संग आरम्भ होनेके पश्चात आपसी भाईचारा एवं प्रेमभावमें अत्यधिक वृद्धि हुई है | उसने एक और महत्वपूर्ण बात बताई कि पहले गांवमें आये दिन लडाई-झगडे हुआ करते थे जबसे यहां सत्संग आरम्भ हुआ है लडाई- झगडेका प्रमाण नगण्य हो गया है | सच्चाई भी यही है सत्संगसे घरके वास्तुकी आसपास के परिसरकी शुद्धि होती है |
८. सत्संगमें सूक्ष्म स्तरपर दिव्य आत्माओंका आगमन होता है
सत्संगमें देव, ऋषि, संत एवं तपस्वी सूक्ष्मसे आते हैं और साधकको आशीर्वाद देकर जाते हैं इस सन्दर्भमें कुछ साधककी अनुभूति बताती हूं |
१. एक बार हमारे गांव में सत्संग चल रहा था, उस समय एक साधक कुमारी खुशबूको भान हुआ रामकृष्ण परमहंस वहां आये और सत्संगके समय यज्ञ कर रहे थे |
२. एक दूसरे बालसाधिका ११ वर्षीय लिपि कुमारीको अनुभूति हुई सत्संग परिसरमें आकाश मार्गसे कामधेनु उतरकर सत्संग परिसरमें आईं और गोबर और मूत्रका त्याग कर मंदिरके गर्भ गृहमें गयी और वहां रखे प्रसादकी थालीमें अपने थनसे दुग्धकी वर्षा कर पुनः परिसरमें आकर स्वर्गमें चली गयी |
९. सत्संग हमें जन्म हिंदूसे कर्म हिंदु बनाता है |
एक संतने कहा है सतसंगतसे गुण होत है और कुसंगतसे गुण जात || सत्संगमें आनेसे हम दिव्य गुणोंको आत्मसात करते है और हीन गुणोंको नष्ट करनेका प्रयास करते हैं |
खरे अर्थमें सत्संग हमें जन्म हिन्दु से कर्म हिन्दु बननेकी प्रक्रिया सिखाता है |
१०. सत्संग हमें नामजपको सातत्यसे करने हेतु आवश्यक शक्ति प्रदान करता है
साप्ताहिक सत्संगमें जानेका प्रयास करें, सत्संगमें जानेसे नामजप करने हेतु, आवश्यक शक्ति मिलती है और जैसे बिजलीके नहीं रहनेपर इन्वर्टर बिजलीकी भरपाई कर, हमारे उपकरणको चलाता है, उसी प्रकार सत्संगमें प्राप्त हुई सात्त्विकताका प्रभाव एक सप्ताह तक रहता है और हमें नामजप करनेकी शक्ति मिलती है | कलियुगके लिए सर्वोत्तम साधना मार्ग ईश्वरके नामका जप करना है | यद्यपि यह सुननेमें अत्यंत सरल लगता है; परन्तु इसे अखंड करनेके लिए हमारा आध्यात्मिक स्तर कमसे कम ४५% तो अवश्य ही होना चाहिए | वर्तमान समयमें साधारण व्यक्तियोंका आध्यात्मिक स्तर २० से २५% है और ऐसेमें नामजप करना कठिन होता है | वातावरणमें रज और तमके स्पंदनका प्रभाव अत्यधिक होनेके कारण भी मन एकाग्र नहीं हो पाता और नामजपमें सातत्य नहीं रह पाता | सत्संगमें जानेसे नामजपमें निरंतरता बनानेमें किस प्रकार सहायता मिलती है, इस संदर्भमें एक अनुभूति बताती हूं-
ख्रिस्ताब्द १९९९ में जब मैं झारखण्डके धनबाद जिलेमें धर्मप्रसारकी सेवा कर रही थी, तो उस दौरान दो स्त्रियां एक प्रवचनमें आई थीं | दोनों सखी थीं | सत्संग सुननेके पश्चात दोनोंने नामजप आरम्भ भी किया | तीन महीनेके पश्चात जब मैं दोनोंसे एक साथ मिली, तो पता चला कि एक स्त्री, जो वहां आयोजित साप्ताहिक सत्संगमें नियमित जाने लगी थी, उनका नामजप अच्छेसे होने लगा था, और दूसरी स्त्रीका नामजप एक महीनेके पश्चात बंद हो गया था | दोनों ही स्त्री समस्तरी थीं, अर्थात् दोनोंका अध्यात्मिक स्तर ४० प्रतिशत था | ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरके नीचे नामजप अखंड होने हेतु, सत्संगमें अवश्य जाना चाहिए; अन्यथा नामजप करना और उसके प्रमाणको बढाना कठिन होता है, यह ध्यानमें रखना चाहिए | साप्ताहिक सत्संगमें नियमित जाते रहनेसे आवश्यक चैतन्य हमें प्राप्त होता रहता है और हमारी आध्यात्मिक प्रगति हेतु पोषक शक्ति हमें प्राप्त होती रहती है |
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