पूज्य चेतनदासजी महाराजसे सीखनेके लिए मिले मुद्दे


DIDI_MAHARAJ
उपासनाके द्वितीय स्थापना दिवस(अर्थात 3 और 4 जनवरी 2013 को ) कार्यक्रममें एक संत पूज्य चेतन दासजी महाराज आए थे | वे देवराहा बाबा एक शिष्य हैं | उनके आनेके पश्चात सम्पूर्ण वातावरण चैतन्यमय हो गया | प्रस्तुत हैं पूज्य चेतनदासजी महाराजसे सीखने…के लिए मिले मुद्दे : १. ईश्वरप्राप्तिकी उनकी तड़प और साधनाके प्रति उनकी गंभीरता अनुकरणीय है | ७२ वर्षकी आयुमें भी कार्यक्रममें आनेके पश्चात भी वे सुबह चार बजे उठकर स्नान, योगासन, प्राणायामसे निवृत्त होकर अपना सुमिरन और ध्यान नहीं छोडा और उसे वे चारों दिन नियमित अपनी साधना करते रहे | २. समष्टि भी साधना करे इस हेतु उनकी तडप अत्यधिक थी और वे साधकोंको समय समयपर मार्गदर्शन करते रहते थे | ३. गृहस्थ जीवनमें रहते हुए उन्होंने संत पदको पाया है | वे अभी भी अपने परिवारके साथ डेहरी-ऑन-सोन में रहते हैं और जब मैं उनके घर गयी तो पाया कि वे सादा जीवन उच्च विचारका अनुशरण कर जीवन यापन कर रहे हैं और गृहस्थ होते हुए भी एक बैरागी समान जीवन व्यतीत करते हैं | ४. उनकी अपने गुरूपर असीम श्रद्धा है ५. वे अधिकतर समय भावास्थामें रहते हैं अतः जब वे कार्यक्रममें आए तो कई बार साधकोंने उन्हें कभी हंसते कभी गाते कभी रोते हुए पाया | ६. यद्यपि उन्हें पता नहीं था कि प्रांगणमें कुलदेवीका मंदिर है परंतु एक दिवस वे वहां दरवाजेके पास पहुँच कर भजन गाने लगे | ७. मैंने उन्हें जिस दिन जिस समय पहुँचनेके लिए कहा था वे उसी समय पहुँच गए | घरसे निकलनेसे पूर्व उन्हें ठंड लग गयी थी अतः वे अस्वस्थ थे और कड़ाकेकी ठंड भी पड रही थी तब भी वे हमारे यहाँ पहुँच गए और रास्तेमें ही उनका स्वास्थ्य ठीक भी हो गया | ८. भोजन इत्यादिमें इस उम्रमें भी उनका कोई पथ्य नहीं है अर्थात इस आयुमें भी वे शारीरिक रूपसे स्वस्थ हैं ९. वे जब भावावस्थामें होते हैं तब वे भजन लिखते हैं और वे भजनके माध्यमसे अपनी भावको व्यक्त करते हैं | उनकी भजन सुननेसे ही भाव जागृति हो जाती है | १०. यद्यपि वे संत पदपर हैं परंतु उनका वर्तन एक साधक समान ही था | ११. सभी साधकोको वे भावजागृतिके प्रयास बता रहे थे | १२. वे मोबाइल (भ्रमनभाष ) का उपयोग नहीं करते , उनका कहना है कि उससे साधनामें विघ्न पडत है परंतु उन्हें हमसे संपर्क करनेमें कोई अडचन न आए क्योंकि वे पहली बार हमारे यहां आ रहे थे इसलिए उन्होने अपने साथ अपने पुत्रका भ्रमनभाष लाया था | दूसरोंका विचार करना यह साधकत्वका लक्षण है यह वे सिखा कर गए | उनकेद्वारा लाये गए सामानमें उनके साधनाके साहित्य अधिक थे | १३. वे सहज ही गाते और उनसे सहज ही भजन बन जाते थे और उनके भजन सुन साधक झूमने लगते थे | १४. साधना में संत पदपर आसीन होनेका अर्थ साधना समाप्त हो गयी यह नहीं है इसका उन्हें पूर्ण आभास था | १५. एक बैरागी समान वे बिना आरक्षण एक आये और वैसे ही गए | भक्ति, प्रेम और नम्रताके प्रतीक पूज्य चेतनदास महाराजके चरणोंमें कोटी कोटी वंदन ! उनकी कृपा हम सब पर बनी रहे यह उनसे नम्र विनती है |


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