गुरु-शिष्यका प्रेम


गुरु-शिष्यका प्रेम निष्काम, पवित्र और अपेक्षारहित होता है | वस्तुतः शिष्यको तो अपनी आध्यात्मिक प्रगतिकी भी अपेक्षा होती है और सद्गुरु तो प्रेमकी प्रतिमूर्ति होते हैं और शिष्यके प्रति उनका प्रेम पूर्णत: निरपेक्ष होता है एवं मात्र शिष्यके कल्याणपर केन्द्रित रहता है | – तनुजा ठाकुर



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