कुछ समय पूर्व एक स्वामीजीसे मिली थी । स्वामीजी कुछ वर्ष विदेश रहकर अध्यात्मका ज्ञान बांटते थे । मुझे भी महाकुंभके मध्य कुछ दिवस उनका सानिध्य मिला। मैंने पाया कि जब भी वे अपने भक्तोंसे बात करते थे तो आपके भारत, आपके देशमें इस प्रकार कहते थे और विदेशोमें सब कुछ कितना अच्छा है यह बताते थे अर्थात् हमारा देश किस प्रकार पाश्चात्य देशोंसे निकृष्ट है यह वे बताते। लगभग दस बार सुननेके पश्चात मेरा राष्ट्राभिमान उनकी द्वाराकी जानेवाली इस ग्लानिको सहन नहीं कर पाया। मैंने उनसे नम्रता पूर्वक पूछा “क्या आपने विदेशी नागरिकता ले ली है ?” वे पूछे ” आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं ?” मैंने कहा, “आप बार बार सबको ‘आपका देश आपका भारत’ इस प्रकार बोलते हैं इसलिए मुझे लगा कि अब आप संभवतः भारतीय नागरिक नहीं है “। उन्होने कहा ” नहीं मैं अभी भी भारतीय ही हूंं “।
जो मनसे विदेशी बन जाये उनका तनसे भारतीय रहना किस कामका ! जिस अध्यात्मविदको भारत जैसे पुण्य भूमिका महत्व समझमें नहीं आता और अपने अनुयाईमें राष्ट्र प्रेम जागृत नहीं कर सकते उनके अध्यात्मविद होनेपर ही प्रश्नचिन्ह निर्माण हो जाता है। यह सच है कि आज भारतमें अनेक समस्याएं हैं परंतु जो भारतमें है वह अन्यत्र कहीं नहीं है और समस्याओंके कारण अपने राष्ट्रको नीचा दिखाना यह उपाय नहीं, उसके लिए सबने मिलकर कुछ करना चाहिए जिससे स्थितिमें सुधार आए , यह महत्वपूर्ण है और भारतीय होते हुए कुछ वर्ष भारतमें रहने पर ‘आपका भारत’ कहना यह तो एक प्रकारसे अपराध है, अपने मातृभूमिके प्रति मानसिक स्तरका राष्ट्रद्रोह है। जिस मांके धरतीपर जन्म लेकर उसके भूमिपर उपजाए अन्नसे हमारे शरीरका पोषण हुआ है , जिसके जलसे हमारी प्यास बुझी है उसे पराया कैसे कर सकते हैं। यह संस्कार अध्यात्म हमें नहीं सिखाता !! -तनुजा ठाकुर
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