‘द्रष्टा दृश्यावसात बद्ध’ अर्थात देखने वाला दृश्य देखकर बद्ध हो जाता है और उसे उस दृश्य से संबन्धित विचार आते हैं | जैसे गर्मी के मौसम में आम को देखकर आम खाने का विचार सहज ही आता है वैसे ही अश्लील चित्र, गाने, जालस्थान, चित्रपट इत्यादि देखकर मन में काम वासना के विचार प्रबल हो जाते हैं, कलियुग का वासना रूपी भस्मासुर अपने पूर्ण विभत्स स्वरूप में सर्वत्र विचरण कर सभी को अधर्म के पथ पर ले जाने हेतु प्रवृत्त कर रहा है ऐसे में विवेक का प्रयोग करें, न बुरा देखें न बुरा सुनें और न ही बुरे लोगों के संगत में रहें, यह एक मात्र उपाय है, अध्यात्म में इसे ही प्रत्याहार कहते हैं |-तनुजा ठाकुर
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