श्री ध्रुपद सिंह मनहरकी अनुभूतियां


प्रस्तुत है कर्णावती (अहमदाबाद) के साधक श्री ध्रुपद सिंह मनहरकी अनुभूतियां जो मई महीनेमें अपने अग्रज बंधुके साथ गर्मीकी छुट्टियोंमें साधना सीखने एवं सेवा करने हेतु ‘उपासना’ के दिल्ली सेवाकेन्द्रमें पधारे थे |

  • २३ मई २०१३ के दिवस गुरुपूर्णिमा महोत्सव निमित्त अर्पण एवं विज्ञापन एकत्रित करनेकी सेवाके लिए निकलनेसे पूर्व जब सेवाकेन्द्रमें परम पूज्य गुरुदेव डॉ. जयंत वालाजी आठवलेके लिए रखी कुर्सीकी ओर देखकर नमस्कार किया और प्रार्थना की कि वे ही हमसे यह सेवा परिणामकारक स्वरूपमें करवा कर ले लें तो ऐसा लगा कि परम पूज्य गुरुदेव श्वेत वस्त्रमें ‘तथास्तु’ कह रहे हैं और उस दिन हम साधकोंको अन्य द्वास की अपेक्षा अर्पणकी सेवामें समाजसे उत्स्फुर्त प्रतिसाद भी मिला |

अनुभूतिका विश्लेषण : प्रार्थना करनेसे ईश्वरकी या सद्गुरुकी कृपा मिलती ही है और सेवाकी परिणामकारकता बढाने हेतु प्रार्थना एक अचूक साधन है |

  • जब २६ अप्रैल २०१३ को पूज्य तनुजा मां इस बार जब वे प्रवचनके लिए कर्णावती आई थीं तो वे अपना एक छोटासे बस्ता   छोडकर गयीं थीं और हम जब दिल्ली आयेंगे तब उसे लानेके लिए कहा था । जब मैं  अपने बडे भाईके साथ दिल्ली हेतु निकलने लगा  तब मैंने पाया कि उस  सामनके आस-पास श्वेत रंगका कवच निर्माण हुआ और लाल रंगकी किरणें प्रस्फुटित होने लगी थीं। यह अनुभूति सेवाकेंद्र पहुंचकर भी हुई थी।
  • दिनांक २१ मई २०१३ की रात जब मैं ‘उपासना’के दिल्ली सेवाकेन्द्रके मध्य कक्षमें जहां हम कुछ युवा साधक सोते हैं, सोने हेतु बिछावन लगाने लगा तब मुझे पूज्य तनूजा मांके बंद कमरेके द्वारके नीचेसे जो प्रकाश छिटक कर आ रही थी, वे स्वर्णके सूक्ष्म कण समान दिखाई दिए। वे इतने प्रकाशमान थे कि उसका तेज मुझे मेरे नेत्रोंसे देखा नहीं जा रहा था ।
  •  सेवाकेन्द्रमें जब अन्य साधकोंके साथ समष्टि साधना निर्विघ्न एवं परिणामकारक हो और उसमें अनिष्ट शक्ति बाधा निर्माण न करे इस हेतु पूज्य मांके बताये अनुसार भगवान शिवका  मारक जप कर रहे थे तब मुझे अति सूक्ष्म पीले रंगकी किरणें सारे साधकोंके शरीरमें प्रवेश करती हुई दिखाई  दी और श्वेत रंगका कवच निर्माण हो गया और धीरे-धीरे पूरे सेवाकेन्द्रके  चारों ओर कवच निर्माण हो गया। ये किरणें इतने शक्तिशाली थी कि वे आस-पासकी सेवाकेन्द्रकी वस्तुओंको पवित्र कर कवच निर्माण कर रही थी। मारक जप करते हुए जब हमने अपने बडे भाईको देखा तो उनका शरीरके चारों ओर पीले रंगकी किरणोंका कवच था और उनसे अत्यधिक पीले रंगकी किरणें बाहरकी ओर निकल रही थी।
  •  सेवाकेंद्रसे वापिस आकर कर्णावतीमें हमारे घरके छतपर हम अकेले सो रहे थे। आश्रममें सीखे तथ्य अनुसार देवताओंकी सात्विक नाम-पट्टियां बिछावनके चारो ओर  लगा रखी थी और  नाम-जप करते-करते ही सोया था  अर्धरात्रिको जब नेत्र खुली तो मुझे आभास हुआ कि बिछावनके निचे सारी सात्विक नाम-पट्टिया स्वर्णके समान चमक रही हैं एवं सम्पूर्ण बिछावन श्वेत रंगसे चमक रहा था। उसी समय हमें लगा कि मेरे ऊपरसे एवं चारों दिशाओंसे पांच घनी लाल रंगकी कोई आकृति मुझे दबा रही हैं; परंतु नाम-जप करते-करते पुनः नींद आ गयी। मुझे उत्सुकता है कि वह क्या था और हमें सोनेके समय कष्ट क्यों दे रहा था ?
  • अनुभूतिका विश्लेषण : जब भी गर्मीके दिनोंमें हम बाहर सोते हैं तो अनिष्ट शक्ति हमें अधिक कष्ट देती ही हैं अतः सोनेसे पूर्व बिछावनपर बैठकर अपने कवच हेतु देवताओंके नामपट्टीके  कवचके साथ ही पंद्रह मिनट सूक्ष्म कवचके लिए प्रार्थना कर जप करना चाहिए तभी सोना चाहिए । कवच हेतु नामजप करनेसे पूर्व अपने अराध्यका स्मरण करें और तत्पश्चात उन्हें संबोधित कर हाथ जोडकर इस प्रकार प्रार्थना करें, “हे प्रभु अभी जो मैं पंद्रह मिनटका जप करने जा रहा हूं उससे मेरे एवं मेरे बिछावनके चारों ओर आपके शस्त्रोंसे सुरक्षा कवच निर्माण हो ओर सम्पूर्ण रात्रि मेरा अनिष्ट शक्तिसे रक्षण हो” |वे लाल आकृतियां अनिष्ट शक्तियां थीं  । – (पू.) तनुजा ठाकुर


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution