उत्तर : धर्माधिष्ठित राष्ट्र ही सुखी, समृद्ध और प्राकृतिक प्रकोपसे वंचित रह सकता है ! किसी भी निधर्मी और अहिन्दु पद्धतिकी राजकीय व्यवस्थामें प्राकृतिक आपदाओंको रोकनेकी क्षमता नहीं होती ! इसलिए वेदोंमें देवोंको यज्ञमें आहुति देकर उसे प्रसन्न रखनेकी प्रक्रिया बतायी गयी है ! जैसे लौकिक सरकारके मंत्री होते हैं वैसे ही इस सृष्टिके कर्ता-धर्ताने विभिन्न देवताओंको सृष्टिके संचालन हेतु भिन्न विभाग दिये हैं, अब हम बिना विभागाध्यक्षके अनुमति लिए, उनके विभागसे, मानवीय अविष्कारके रूपमें, अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु छेड-छाड करेंगे तो हमें दंड तो मिलेगा ही | जैसा कि एक अहिन्दु राजकीय व्यवस्था, वर्तमान समयमें उनको आहुति नहीं देते हैं तो ऐसी स्थितिमें वे अपने अस्तित्त्वकी शक्तिका आभास तो हमें करवायेंगे ही |
अतः सनातन धर्म आधारित राष्ट्र प्रणाली ही एक मात्र ऐसी प्रणाली है जिसमें ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’ का सिद्धान्त अन्तर्भूत तो है ही सृष्टिके संचालनके सभी अव्ययके प्रति कृतज्ञताका भाव भी समाहित है और इसलिए यह पद्धति ही सर्वश्रेष्ठ और मानवके लिए हितकारी है ! – तनुजा ठाकुर
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