ईश्वरकी कृपा कब तक मिलती है ?


जब तक हम निरीह और अबोध बने रहते हैं तब तक माताका ध्यान हमारी ओर सतत रहता है , जब हम उनसे कहने लगते है “मैं स्वयं स्नान कर लुंगा, मैं स्वयं कपड़े पहन लुंगा , मैं स्वयं भोजन कर लुंगा, तब मां हमारी ओरसे धीरे धीरे निश्चिंत हो जाती हैं वैसे ही जब हम भी सदैव ‘मैं- मैं’ करते रहते हैं तो भगवान भी हमारा साथ छोड देते हैं ! ईश्वर ही कर्ता हैं, जब यह भाव प्रबल रहता है और ‘ मैं कुछ नहीं हूं’ यह भाव व्याप्त रहता है, तब हमारी स्थिति एक अबोध बालक समान रहता है और ऐसी स्थितिमें ईश्वरकी भी असीम कृपा रहती है ! – तनुजा ठाकुर



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