हमारी भारतीय संस्कृतिमें कलाको ईश्वरप्राप्ति हेतु योगमार्गके रूपमें देखा जाता था |


हमारी भारतीय संस्कृतिमें कलाको ईश्वरप्राप्ति हेतु योगमार्गके रूपमें देखा जाता था। आज कलाका दुरुपयोग वासना तृप्ति हेतु किया जाता है ! पहले कलाकार अपनी कलाकी प्रस्तुतिमें अवतारों, संतों, सिद्धों, महापुरुषों,राष्ट्रनायकों, तपस्विनी नारियोंकी कथाएं प्रस्तुत करते थे। आज पतित स्त्री और कामी पुरुषोंकी जीवनकथाओंको प्रस्तुत कर समाजके मनको दूषित किया जा रहा है और ऐसे कलाकारोंको हमारी सत्तारूढ़ अधर्मी, नीच और कुसंस्कारी सरकार राष्ट्रीय सम्मान देकर अन्य चरित्रहीन स्त्री और पुरुषोंके चित्रीकरणको बढावा दे रही है।  सचमें धर्मनिरपेक्ष समाज पशुसे भी अधिक निकृष्ट जीवन जीने लगता है !-(परत्पर गुरु) तनुजा ठाकुर



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