यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ।
भाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं
मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।
अर्थ : जहां -जहां भगवान श्रीरघुनाथकी संकीर्तन होता है, वहां शरणागत मस्तक, जुडे हुए हस्त कमल और नेत्रोंमें भावपूर्ण आनंद अश्रुके साथ उपस्थित होते हैं , ऐसे राक्षसोंका संहार करनेवाले, श्रीहनुमानको हमारा कोटिश: प्रणाम !
Leave a Reply