सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हजको !
आजकल मुंबई फिल्मी जगतके कुछ सुप्रसिद्ध अभिनेता एवं अभिनेत्रियां मुंबईमें हुए समूहिक बलात्कारके प्रति अपना रोष प्रकट करनेकी नौटंकी करते हुए दिखाई दे रहे हैं ! जिसे समाज अभिनयका देवता मान पूजता है ऐसे माननीय अमितम्भ बच्चनजी उसमें से एक हैं, क्या उनकी अंतरमात्मा तब मर चुकी थे जब वे वृद्धावस्थामें एक किशोरीके साथ प्रेम करनेका अभिनय कर रह समाजको दिशाभ्रमित कर रहे थे और वैसे ही प्रियंका चोपडा, सोनम कपूर और उनकी जैसी अनेक प्रसिद्ध अभिनेत्रियां समाचारमें लोकप्रियता पानेके लिए बलात्कारका दिखावटी रोष प्रकट कर रही हैं , आजकी एलेक्ट्रोनिक मीडिया और इन सभी निर्लज्ज कलाकारोंके कारण आज नैतिकताका सर्वाधिक पतन हुआ है, ऐसेमें इनका समाजमें हुए कुकृत्योंका विरोध करना इनके दोगलेपनको दर्शाता है ! समाजके आदर्श बने, इन सभी आदर्शहीन व्यक्तियोंको ईश्वर कभी क्षमा नहीं करेंगे और ईश्वरसे उन सभीको कठोर दंड मिलनेवाला है ! जिन्हें समाज आदर्श मानता है उनके प्रत्येक कृति यदि आदर्श नहीं हुए तो वे सबसे बडे पापी होते हैं और सर्वाधिक कठोर दंडके अधिकारी भी होते हैं, निर्लज्ज अभिनेताओंकों अब यह बताने का समय आ गया है ! और ऐसे दोमुंहे चरित्रवाले और ओछी लोकप्रियता एवं धनको पाने हेतु अपनी अंतरमात्माका बेचनेवाले, समाजको अपनी चित्रपटोंसे दिशाभ्रमित करनेवाले कभी समाजके आदर्श नहीं हो सकते हैं और आदर्श कलाकार तो बहुत दूरकी बात है वे सब तो कलाकी नामपर कलंकके रूपमें इतिहासमें सदैव कुप्रसिद्ध रहेंगे !-तनुजा ठाकुर
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