गजेंद्रमोक्षकी कथा


Gajendra_Moksha_printत्रिकुट नामका एक सुंदर पर्वत था । त्रिकुटके चरणोंपर सागरकी लहरें छप-छप करती थीं । पर्वतपर घने वन थे । और वनमें गजेंद्र नामक हाथियोंका राजा रहता था । वह पशुओंके समूहमें अन्य सभी हाथियोंपर शासन करता था ।

एक दिन गजेंद्र अपने परिवार,मित्रों तथा अन्य हाथियोंके साथ वनकी एक झीलमें खेल रहा था।अचानक जलाशयमें रहनेवाले एक घडियालने गजेंद्रका पांव पकड लिया । एक हाथी होते हुए भी गजेंद्र मुक्त नहीं हो सका । तब वह सहायताके लिए चिल्लाया । सभी मित्र तथा अन्य हाथी उसके आस-पास एकत्र हो गए तथा सहायता करनेका प्रयास करने लगे,परंतु वे कुछ कर नहीं पाये  । घडियाल सभी हाथियोंके सामूहिक बलसे अधिक बलशाली था । उनलोगोंने प्रयास छोड दिया । गजेंद्रने  लंबे समय तक घडियालसे बच निकलनेका प्रयास किया । वह तब तक चिंघाड़ा जबतक कि उसका गला नहीं बैठ गया । घडियाल उसे सरलतासे जाने देनेवाला नहीं था ।

गजेंद्रमोक्ष-हाथियोंके राजाका पूर्ण समर्पण

हाथी तथा घडियालने एक सहस्र वर्षों तक संघर्ष किया । जब एक सहस्र वर्ष बीत गए, हाथी थकने लगा, यद्यपि घडियालकी शक्ति अब भी अक्षुण्ण थी । गजेंद्रका अत्यधिक रक्त बह गया तथा वह दुर्बल हो गया । वह अंततः समझ गया कि केवल ईश्वर ही उसकी सहायता कर सकते हैं तथा उसने भगवान नारायणको आर्ततासे पुकारा ।

उसने भगवान विष्णुकी प्रार्थना प्रारंभ की । भगवान विष्णुने गजेंद्रका सहायता हेतु क्रंदन सुन लिया तथा अपने वाहन गरुडपर प्रकट हुए । उन्होंने सुदर्शन चक्रको भेजा । चक्रने घडियालका वध किया तथा गजेंद्रको मुक्त कराया । गजेंद्रने भगवान नारायणको एक कमल अर्पित किया तथा उसका जीवन बचाने हेतु उन्हें कृतज्ञता ज्ञपित की |

ऐसा विचित्र प्रतीत हो सकता है,घड़ियालने तभी एक गंधर्वका रूप धारण किया । उसका नाम हुहु था । उसे एक साधुने श्राप दिया था कि वह एक  घडियाल बन जाएगा । तथा साधुने उससे कहा था कि भगवानविष्णुद्वारा उसे श्रापसे मुक्ति मिलेगी । वह घटना अब घटित हुई । वस्तुतः हाथी भी पूर्वमें इन्द्रद्युम्न नामका राजा हुआ करता था । और उसे एक साधुद्वारा श्राप दिया गया था कि वह एक हाथीके रूपमें जन्म लेगा । इन्द्रद्युम्नको भी उसके श्रापसे मुक्ति मिल गई तथा भगवानविष्णुका सान्निध्य मिला।



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