सूक्ष्म जगत – पौधोंसे सम्बन्धित कुछ अनुभूतियां


003इस कडीमें मैं पौधोंसे सम्बन्धित अपनी कुछ अनुभूतियोंके प्रथम भागको  साझाकर रही हूं  जो सत्य हैं; किन्तु आश्चर्यजनक भी हैं 

मैं  ख्रिस्ताब्द २००८ से २०१० तक  झारखण्ड  स्थित अपने पिताके पैतृक ग्राममें एकान्तवास कर रही थी | मुझे प्रकृतिसे अत्यधिक प्रेम है; अतः फूल-पौधे  भी अत्यधिक प्रिय है | १६.१०.२००९के दिवस अपने आंगनके गमलेमें एक गुडहलकी (जासवंद)  एक डाली लगा दी | दो मास हो गए;  परन्तु उसमें मात्र एक वही टहनी थी | मैंने सोचा सम्भवतः इस पौधेको जितनी बडा गमला चाहिए वह यह नहीं है; अतः यह पौधा बढ नहीं रहा | मैंने उसे उखाडने हेतु हाथ बढाया तभी एक सूक्ष्म ध्वनि आई, “मुझे न उखाडे मैं दो दिनमें आपको दो फूल खिला कर दिखाऊंगा” | मैं हंसने लगी, मैंने कहा, “एक पत्ता तो है नहीं, दो दिनमें फूल कहांसे आएगा” ? पुनः उस पौधेसे एक सूक्ष्म ध्वनि आई “ दो दिन फूल न आए तो उखाड दें मुझे; परंतु अभी तो मुझे अपने आंगनमें रहने दें” | मैंने कहा “ यदि आपकी बात झूठ हुई तो निश्चित उखाड दुंगी  |”  इतना कह मैं दूसरी सेवा करने लगी |
सन्ध्यामें काली मंदिर सामूहिक आरती हेतु जा रही थी तो मेरा ध्यान सहज ही उस पौधेकी ओर गया तो मुझे विश्वास नहीं हो रहा था उसमें दो पत्ते और दो नन्ही कलियां थीं | मुझे उसे देख अपनी ही आंखोपर विश्वास नहीं हो रहा था | मैंने उसपर प्रेमसे हाथ फेर मंदिर चली गयी | अगले दिन मैंने देखा वह कली खिलने योग्य हो गयी थी और और उसके अगले दिन एक फूल खिला हुआ था और एक कली बडी सी थी जो दो दिन पश्चात खिल गयी | मैंने उसके चित्र निकाल कर रख लिए; क्योंकि बुद्धिवादियोंको मेरी बातें अनर्गल लगती हैं  | कुछ दिन पश्चात वह पौधा बडा हो गया और उसे मैंने बडे गमले में डाल दिया; परन्तु एक वर्ष पश्चात मैं जब धर्मयात्रापर निकली तो साधकोंने उसमें जल नहीं डाला और वह पौधा सुख गया | मैंने यह सोच अपने मनको मना लिया कि संभवतः उसकी आयु उतनी ही थी |

001२.  १ मई २०१२  में धर्मयात्रा कर जब मैं झारखण्डमें अपने निवास स्थान पहुंची तो देखा कि सभी पौधे तो ठीक थे; परंतु दो मोगरेके पौधे जो जब मैं डेढ मास पूर्व धर्मयात्राके लिए निकली थी तब अत्यधिक हरे-भरे थे, वे सूख गए थे, मैंने कुछ बालसाधकोंको गमलेकी देखभाल करनेकी सेवा दी थी और मुझे उसे सूखा देख अत्यधिक दु:ख हुआ, मैंने साधकोंको उनके असतर्कता हेतु डांट भी लगाई और पता नहीं कैसे उन पौधोंको देख मेरे नेत्रसे अश्रु छलक गए और मैंने उनसे साधकोंकी ओरसे क्षमा मांगी | मैंने सोचा दो दिन पश्चात उसमें नए पौधे लाकर लगाउंगी; परंतु अगले दिन मेरे आश्चर्यकी सीमा नहीं रही, बाल साधकोंने उन सूखे पौधे जिनकी सूखी चोटी टहनियोंको मैंने छूकर देखा थे, उसमें भी जल डाल दिया था और अगले दिन उसमें अनेक छोटी कोपलें और कलियां निकल आई थीं | मैं यह देख हथप्रभ रह गयी कि एक दिन में यह कैसे हो सकता है और दोनों गमलोंकी स्थिति एक जैसी थी | मैंने उन्हें प्रेम से स्पर्श किया और उसके अगले दिन उसमें अनेक फूल और पत्ते थे, सभी बाल साधक ये देख आश्चर्यचकित थे | चित्रमें वे दो पौधे ही हैं, जिनके छायाचित्र मैंने तीसरे दिन निकाला है | – तनुजा ठाकुर



One response to “सूक्ष्म जगत – पौधोंसे सम्बन्धित कुछ अनुभूतियां”

  1. Gyanesh shendye...MUMBAI says:

    This reminds me Shree Gurucharitra’s adhyay…where a brahmin ..very poor n disesed….given one dryed stick to sow…brahmin did so and with full faith start watering eat….few days later another disciples told shri guruji….guruji just smiled n in seventh day hard stick started getting green with new leafs n brahmin gets cured…..
    Didi ma you are my guru…though u never seen me i never get any opportunity to meet you due to my poorest condition….but for me you r my guru…n dr.athavle is sakshat dattguru for me….just praying all the time ….my sad situation should get over n i can cone for ashirwad n seva to restablish our hindu rashtra….but right now m totally..totally helpless…but have full faith that soon everything will be excellent.
    Shree gurudev datta

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