जिनकी करनी और कथनीमें अंतर होता है उनकी वाणीमें चैतन्य नहीं होता !!


उपदेशककी वाणीमें चैतन्य ही समाजको प्रत्यक्ष कृति करने की और सुधरनेकी प्रेरणा देता है यदि उपदेशकके वाणीमें चैतन्य न हो तो वह कितना भी प्रयास करे, समाज इस कानसे उसके उपदेशको सुनकर दूसरे कानसे निकाल देगा ! अतः जो समाजमें कुछ सुधार चाहते हैं वे अपनी साधनाको बढानेको प्राथमिकता दें ! जिनकी करनी और कथनीमें अंतर होता है उनकी वाणीमें चैतन्य नहीं होता यह एक शाश्वत सिद्धान्त है ! -तनुजा ठाकुर



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