इंदौरके श्री शीतल भदोरियाकी अनुभूतियां


इंदौरके श्री शीतल भदोरियाकी अनुभूतियां :

१.      जब मैं इंदौरसे गुरुपूर्णिमाके लिए ट्रेन पकडने के लिए बसमें बैठा तो बसमें ही इतनी देर हो गयी कि लगा कि मेरी ट्रेन छूट जाएगी | किसी प्रकार ट्रेन मिल गयी | आरक्षण निश्चित नहीं हुआ था अतः मैं एक खाली सीटपर बैठ गया वहां पर कोई आया ही नहीं जबकि टिकिट निरीक्षक कह रहा था कि कोई भी शेष है ही नहीं जिसे वे मुझे दे सके | ट्रेन इतनी भरी थी कि पैर रखने का भी स्थान नहीं था फिर भी मैं बिना किसी कठिनाईके दिल्ली पहुंच गया और यह सोच मुझे ही आश्चर्य हो रहा था |

अनुभूतिका विश्लेषण : आपका भाव अच्छा था इसलिए आप सभी अडचनोंको पार कर दिल्ली पहुंच गए और अनिष्ट शक्तियां आपको आपकी यात्रामें विघ्न डाल रही थीं परन्तु ईश्वर तो उनसे अधिक शक्तिशाली हैं अतः यदि हममें तडप और भाव हो तो हम सभी बाधाओं को पार कर अपने ध्येय तक अवश्य ही पहुंच सकते हैं |

२.     मैं आपको स्वप्न में कई बार देख चुका हूं | कभी मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए देखता हूं तो कभी मैं अपने गाँव में हूं और मैं आपको वहांके कई धार्मिक वयोवृद्धसे  परिचय करवाता हूं जो अब देह में नहीं है , एक को तो पूरा रामायण कंठस्थ है | मुझे आश्चर्य होता है कि मृत व्यक्तिसे मैं आपको क्यों मिलवाता हूं और आप उनको मंत्रदीक्षा क्यों देती हैं ? क्या यह सब अनुभूति है ?

 अनुभूतिका विश्लेषण : आप जो मंत्र जप रहे हैं उससे आपके कुछ अतृप्त पितर भी कर रहे हैं यह अनुभूति उसी बातका द्योतक है | एक बार सूक्ष्म जगतकी किसी अतृप्त पितरको आपके जपसे गति मिल जाये तो यह बात सूक्ष्म जगतमें आग समान प्रसारित हो जाती है और उसमें से जो सात्विक लिंगदेह है जो किसी छोटीसी भूलके कारण अटक जाती है वे नामजप आरंभ कर देती हैं |

३.      मेरे मनमें जो प्रश्न होता है उसका उत्तर या तो आपके लेखमें पहलेसे ही लिखा होता है या उसी दिन उस विषयपर लेख आ जाता है, ऐसा लगता है कि आप मेरे मनको पढ लेती हैं | जैसे दिनांक १२ अगस्त २०१२ के दिन मैं अपने कार्य करते समय दोपहरमें जिस विषयके बारेमें सोच रहा था और मेरे मनमें उस विषयसे संबन्धित जो प्रश्न थे मैंने पाया कि संध्यामें आपके लेख उसी विषयके बारेमें था | मुझे अत्यधिक आश्चर्य हुआ और आपको यह सब कैसे पता चल जाता है ? अपनी कृपा मुझ पर और मेरे परिवारपर बनाए रखें यह करबद्ध प्रार्थना है |

अनुभूतिका विश्लेषण : मैं अधिकतर संतोंके लेखनी साझा करती हूं या अपने साधनाके मध्य मैंने जो सीखे वह साझा करती हूं ‚उसमें निहित चैतन्यके कारण ऐसा होता है |

४.      आपने गुरुपूर्णिमाके एक दिन पूर्व मुझे मंदिरमें पत्रक बांटनेकी सेवा करनेके लिए कहा परंतु मेरे कमरमें इतनी असह्य वेदना होने लगी कि मैं चाह कर भी हस्त पत्रक बाँट नहीं सका | जब मैं समाचार पत्रके कार्यालयमें उन्हें निमंत्रण देने गया तो मेरे लिए यह सेवा इतनी कठिन हो गयी कि आपको बता नहीं सकता , मुझे इतनी तीव्र स्तरकी कमरकी वेदना आज तक नहीं हुई थी | जब गुरुपूर्णिमाके दिन कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा तो भी वेदना तीव्र ही थी  और सेवा के दौरान भी वेदना होती रही |  कार्यक्रमके समापनपर जैसे ही मैंने आपके चरण वंदन के लिए झुका तो जैसे मेरा  कांटा ही निकल गया और वह वेदना कब चली गयी यह पता ही नहीं चला | मुझे लगता है जब मैंने आपके प्रथम बार विश्राम गृह में दर्शन किया तब मैंने आपको प्रणाम नहीं किया संभवतः मुझे उसी का दंड मिला था |

अनुभूतिका विश्लेषण : आपको अनिष्ट शक्ति का कष्ट था प्रणाम करने की प्रक्रिया में उस अनिष्ट शक्तिको गति मिल गयी और आपकी वेदना समाप्त हो गयी ! इससे हिंदु धर्ममें चरण वंदनकी महिमा समझमें आती है |- तनुजा ठाकुर



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