प्रेरक प्रसंग-देवर्षि नारद और देवी माया


naradji|| देवर्षि नारद और देवी माया ||

एक बार भगवान विष्णुने  देवर्षि नारसे कहा इस संसार में कुछ भी सत्य नही है, हमें जो कुछ भी दिखाई देता है यथार्थमें वह देवी मायाका रचाया हुआ खेल है | नारदजी इस बातको समझ नही पाएं और उन्होंने भगवानसे निवेदन किया, ” हे नाथ, कृपया देवी मायाके शक्तिशाली एवं मायावी खेलकी प्रचिति करवाइये” | भगवान विष्णु देवर्षि नारदको अपने साथ एक घने वनमें लेकर पहुंचे जहां एक बहुत बडा सरोवर था | भगवान विष्णुने नारदजीसे उस सरोवरमें स्नान करनेका आग्रह किया | नारदजीने  अपनी वीणा ‘महती और ध्यान करनेके लिए उपयोगमें आने वाले मृगचर्मके आसनको किनारेपर रखा और सरोवरमें प्रवेश किया अचानक नारद मुनि एक अति सुंदर युवतीके वेषमें रूपांतरित हो गये | वह  युवती सरोवरसे बाहर निकलकर  अपने चारों ओरके सौंदर्यका आनंद लेने लगी, तभी सरोवरके किनारे थलध्वज नामक एक राजा आया | युवतीके सौंदर्यसे मोहित हो राजाने, उसके सामने विवाहका प्रस्ताव रख दिया, युवती भी सहमत हो, विवाहके बंधनमें बंध गयी | समय बीतता गया |

बारह वर्षोके अत्यन्त उल्लासित वैवाहिक जीवनके उपरांत उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम वीरवर्मा रखा गया | तत्पश्चात हर दो वर्षोंके अंतरालसे उसे पुत्र प्राप्ति होती  गयी | और अगले चौबीस वर्षोमें वह बारह पुत्रोंकी मां बन गईं | इसके पश्चात उसने आठ पुत्र यौवनावस्थामें पहुंच कर विवाहित हो चुके थे जिनसे कुछ पोते-पोतियोंकी भी प्राप्ति हुई | इसी समय एक शत्रु राजाने थलध्वजके राज्यपर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया | युद्धमें उसके पुत्र एवं पोते मृत्युको प्राप्त हुए | थलध्वज प्राणोंकी रक्षा के लिए भागा | तत्पश्चात वो अपनी पत्नीके साथ राज्य छोड वनमें उसी सरोवरके किनारे पहुंचा जहां उसे वो मिली थी | वहां भगवान विष्णु ब्राम्हणके वेशमें उनकी प्रतीक्षामें बैठे थे | भगवान ने उन्हें सरोवरमें स्नान करनेके लिए कहा | नारद पुन: अपने मूल स्वरूपमें आ गये | तब जाकर उन्हें विश्वास हुआ कि उनके साथ ये सब क्या हुआ |

तदोपरान्त भगवान विष्णुने उनसे कहा कि जो कुछ भी हुआ वह एक भ्रम था; परंतु  देवी मायाके कारण सत्य लग रहा था |

 

 



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