सत्संगका महत्त्व


Satsang

  एक बार अवंतिपुरमें साधु कोटिकर्ण आए । उन दिनों उनके नामकी धूम थी । उनका सत्संग पाने दूर-दूरसे लोग आते थे । उस नगरमें रहनेवाली कलावती भी सत्संगमें जाती थी । कलावतीके पास अपार संपत्ति थी । उसके रात्रि सत्संगकी बात जब नगरके चोरोंको ज्ञात  हुई तो उन्होंने उसके घर सेंध लगानेकी योजना बनाई । एक रात जब कलावती सत्संगमें चली गई, तब चोर उसके घर आए । घरपर दासी अकेली थी । जब दासीको पता चला कि चोर सेंध लगा रहे हैं तो वह डरकर वहांसे भागी और उधर चल दी जहां कलावती सत्संगमें बैठी थी । कलावती तन्मय होकर कोटिकर्णकी अमृतवाणी सुन रही थी । दासीने उसे संकेतसे बुलाया, किंतु कलावतीने ध्यान नहीं दिया । इस मध्य चोरोंका सरदार दासीका पीछा करता हुआ सत्संग स्थल जा पहुंचा । तब डरकर दासी कलावतीके पास जाकर बोली- स्वामिन, चलिए घरमें चोर घुस आए हैं ।” कलावतीने कहा – “तू चुपचाप सत्संग सुन।” धन तो पुनः मिल जाएगा; किंतु इतना अच्छा सत्संग कहां मिलेगा ? कलावतीका उत्तर सुनकर चोरोंका सरदार स्तब्ध रह गया और उसने भी पूरा सत्संग सुना । सत्संग समाप्तिपर वह कलावतीके चरणोंमें गिर पडा और बोला- “आज तुमने मेरी आंखोंसे अज्ञानका आवरण उठा दिया । अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा ।” तब तक उसके साथी चोर भी वहां आ पहुंचे । उन्होंने कहा- “हमें कितना धन मिल रहा था और तुम यहां आ बैठे ?।” तब वह बोला- “अब तक झूठे सुखसे संतोष पाया; किंतु आज सच्चा सुख मिला है । तुम भी मेरे साथ सत्संग सुनो ।”

सार यह है कि भौतिक संपदा शरीरको सुख पहुंचाती है; किंतु सत्संग आत्माको शांति प्रदान करता है और आत्माका संतोष शरीरके सुखसे बढकर होता है ।



One response to “सत्संगका महत्त्व”

  1. Prerna dayi katha satsang ka labha vastvikta mai kya hai pata chala.

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