वैदिक विवाहके लाभ


अ. पत्नीको धर्मपत्नी कहना : धर्मने पत्नी स्वीकारनेकी अनुमति दी है, इसलिए वैदिक पद्धतिसे विवाह करनेपर उस पत्नीको ‘धर्मपत्नी’ कहते हैं । आ. अधिकारकी अपेक्षा उत्तरदायित्वका भान अधिक : जब सात्त्विकताका संस्कार कर विवाह संपन्न होता है, तब पति एवं पत्नीका एक-दूसरेसे व्यवहार केवल शारीरिक स्तरपर न होकर, मानसिक स्तरका भी होता है । वे एक-दूसरेका विचार करते हैं तथा प्रेम एवं समझदारीसे आचरण करते हैं । उन्हें अधिकारसे अधिक उत्तरदायित्वका भान रहता है । इ. विवाहित स्त्रीको देखकर उसके प्रति मनमें एवं समाजमें आदरका स्थान निर्मित होना तथा समाजव्यवस्था बनी रहनेमें सहायता होना : विवाहित स्त्रीके मस्तकका कुमकुम, गलेका मंगलसूत्र, हाथोंकी हरी चूडियां, पैरोंकी बिछिया एवं छह अथवा नौ गजकी साडी देखकर उसे देखनेवालेके मनमें उसके प्रति अपनेआप ही आदर निर्माण होता है । विवाहित स्त्रीको विवाहके उपरांत समाजमें अपनेआप ही पत्नी, बहू, चाची, देवरानी इत्यादि संबंधोंके कारण आदरका स्थान प्राप्त होता है । परस्त्रीको बुरी दृष्टिसे न देख माताके रूपमें एवं आदरसे देखनेके कारण समाज-सुव्यवस्थामें सहायता मिलती है । उसका आदर्श अविवाहित लडकियोंको भी प्राप्त होता है । ई. संतान जन्मत: सात्त्विक होना : वैदिक पद्धतिसे विवाह करनेवाले दंपतिके घर जन्म लेनेवाला बच्चा जन्मतः सात्त्विक होता है । उ. पारिवारिक स्वास्थ्य बना रहना एवं संतानको धर्माधिष्ठित जीवन जीनेकी प्रेरणा प्राप्त होना : जीवनभर माता-पिताद्वारा व्यतीत किया गया आदर्श जीवन एवं त्यौहार, व्रत और कुलाचार पालन (धर्माचरण) के कारण परिवारका स्वास्थ्य बना रहता है । इससे उनकी संतानको भी धर्माधिष्ठित जीवन जीनेकी प्रेरणा मिलती है ।’



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