विकसित राष्ट्रके व्यक्तियोंमें स्वभाषाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ है !


कुछ दिवस पूर्व मैं नेपालके काठमांडू नगरमें एक सामाजिक क्लबमें प्रवचन लेने गई थी ! वहां कुछ स्त्रियां मेरे प्रवचनसे पूर्व आंग्ल भाषा (English) में उद्बोधन कर रहीं थीं, लगभग दस स्त्रियोंने मेरे प्रवचनके पूर्व एवं पश्चात् उसी भाषामें कुछ-कुछ बोला होगा, उनमें दो स्त्रीको छोड किसीको अङ्ग्रेज़ी ठीकसे नहीं आती थी । उनकी टांग तोड आंग्लभाषासे मुझे ध्यानमें आया कि आज भी विकासशील देशोंके अनेक व्यक्ति हीनभावनाके शिकार हैं और उन्हें लगता है कि चाहे टूटी फूटी बोलो; परंतु अपने झूठे अहंके प्रदर्शन हेतु आंग्लभाषामें बोलो !! जिस स्त्रीने मेरा परिचय दिया वे ऐसी आंग्लभाषा बोल रही थीं कि मुझे भी मेरा परिचय समझमें नहीं आया ! मुझे उन स्त्रियोंकी मानसिकता देख निराशा हुई; परंतु उनमें अहं इतना अधिक था कि मैं उन्हें यदि यह बता देती तो उनके तथाकथित स्वाभिमानको ठेस पहुंच जाती; अतः मैं उन सबकुछ साक्षीभावसे  देखती रही !! इस हीन भावनाके ग्रास मात्र विकासशील देशके ही लोग हैं, विकसित राष्ट्रके व्यक्तियोंमें स्वभाषाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ है ! -तनुजा ठाकुर    (२२. १०.२०१३ )



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