अपनी चूक स्वयंप्रेरित होकर क्यों स्वीकार कर बताना चाहिए ?


१.    चूक बतानेसे नम्रताका गुण आत्मसात होता है, ध्यान रहे, अहंकारी व्यक्ति अपनी चूकको सदैव ढकनेका प्रयास करते हैं !
२.    चूक लिखनेसे और उसे साझा करनेसे उस चूकसे निर्माण हुए पाप कर्मकी तीव्रता अल्प हो जाती है और यदि उस चूककी तीव्रता अनुरूप प्रायश्चित लिया जाए तो उस चूकसे निर्माण हुए पाप कर्मका क्षालन हो जाता है और उस पाप कर्मका फल नहीं भोगना पडता है ।
३.    जिस चूकसे समष्टिको या समष्टि कार्यको हानि पहुंचे, वह बडा पाप कर्म होता है । उसका दण्ड भी ईश्वर अधिक कठोर देते हैं; अतः ऐसे चूकका कठोर प्रायश्चित स्वयंप्रेरित होकर ले लेना चाहिए !  
४.    चूक लिखनेसे या साझा करनेसे अन्य साधकसे भी उस प्रकारकी चूक न हो, यह समाज सीखता है और इससे समष्टि साधना होती है ।
५.    ‘जो चूक स्वीकार नहीं कर पाता है, वह साधक नहीं है’, यह सरल सा समीकरण ध्यान रखें !
हमारे श्रीगुरुने कहा है कि प्रत्येक चूक छोटी हो या बडी, हमें ईश्वरसे दूर करती है; अतः चूकसे हमारी साधना नष्ट होती है । यह ध्यानमें रखकर अपने दोषोंपर ध्यान देकर उसे दूर करनेका प्रयत्न करना चाहिए ! -तनुजा ठाकुर (१३.५.२०१४)



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