इटलीके साधकको मेरे मनकी स्थितिकी हुई अनुभूति !


 

 

 

 

 

 

दिनांक ३ मई २०१४ को मैं इटलीके श्री राकेश भार्गवके घरमें थी ।  सुबह दस बजे उन्होंने अपनी अनुभूति सांझी की जिसे सुनकर मुझे भी बहुत आश्चार्य हुआ | मुझे दो दिवससे रातमें ज्वर आ रहा था और बहुत सर्दी खांसी भी हो गई थी । दिनांक २ मईको रातके दस बजे सर्दी और खांसीके कारण अत्यधिक अस्वस्थ थी ।  मैंने सोचा कि  सोनेसे पहले गर्म पानी और औषधि ले लेती हूं,  मैंने श्रीमती मोनिषा भार्गव जो राकेशजीकी पत्नी है उनसे एक फ्लास्कमें गरम पानी देनेको कहा जिससे कि मैं रात्रिमें औषधि ले लूं और सुबह चार बजे जब साधनाके लिए उठती हूं तो  तुलसीकी चाय औषधिके साथ ले लुंगी;  परन्तु जब रात्रि सोनेसे पूर्व जब मैंने फ्लास्कके बोतलसे गिलासमें पानी डालनेका प्रयत्न किया तो पानी फ्लास्कसे टपकना आरम्भ  हो गया, मैंने दोबारा प्रयत्न किया परन्तु पुनः उससे पानी टपकने लगा । जब मैंने  फ्लास्कको खोला तो ज्ञात हुआ कि वह अंदर से टूट गया था  | मैं सुबह पौने चार अपनी साधना हेतु उठी और पाया कि मुझे बहुत तीव्र ज्वर था । मुझे गरम पानीकी आवश्कयता थी क्योंकि  मुझे औषधि लेनी थी; परन्तु मैं किसी भी परिवारवालोंको कष्ट नहीं देना चाहती थी अतः दन्त मंजन और नित्य कर्मके पश्चात्, मैं लेट गयी और नाम जाप और प्रार्थना  करने लगी | सुबह साढे आठ बजे मेरा ज्वर उत्तर गया, गला और नाकमें जो सर्दी और खांसीके कारण कष्ट हो रहा था वह  भी ठीक हो गए थे वह भी बिना औषधिके । मैं अपने कमरेसे बाहर आई और स्नान करने  हेतु स्नानगृहमें चली गयी |
जब मैं स्नान इत्यादिसे निवृत्त होकर अल्पाहार हेतु भार्गव कुटुंबके साथ बैठी तो वे मुझे अपनी  अनुभूतिका वर्णन करते हुए कहा कि अचनाक  सुबह पौने चार, उनकी नींद खुल गई और उनको चिडियोंके चहकनेकी ध्वनि तीन-चार बार सुनाई दी; परन्तु उनको चिडियोंके चहकनेमें मेरी स्वरमें धीमी सी फ़ुसफ़ुसाट सुनाई दे रही थी कि मुझे गरम पानी चाहिए । मैं अश्चार्यचकित थी उनकी यह अनुभूति सुनकर । मुझे उसी समय गरम पानीकी अत्यधिक आवश्यकता थी क्योंकि ज्वरके कारण मेरा कंठ सुख रहा था और मुझे औषधि भी लेनी थी परन्तु मैंने सोचा कि संभवतः वे सो रहे होंगे; अतः संकोचसे उन्हें कुछ बताना उचित नहीं लगा; परन्तु मेरे मनकी यह बात चिडियोंके कलरवके मध्य मेरे स्वरमें कैसे सुनायी दिया यह मुझे भी ज्ञात नहीं हुआ ।  जब मैंने उन्हें बताया कि मैं उसी समय उठी थी और मुझे गर्म पानी चाहिए था तो उनके आश्चर्यका ठिकाना नहीं रहा, वे कहने लगे कि आपने हमें क्यों नहीं बताया ? श्रीभार्गवने यह भी कहा कि वे मेरे कमरे तक भी गए थे परन्तु द्वार बंद था अतः वे पुनः सोने चले गए क्योंकि उन्हें लगा कि संभवतः यह उनका भ्रम होगा | उसी दिवस संध्या चार बजे जब श्रीमती भार्गव उस फ्लास्कको लेने मेरे कमरेमें गयी तो वह उनके उठाते ही टूट गया और पूरे कमरेमें कांच फैल गया ! यदि रात्रिमें या सुबह  मेरे साथ ऐसा होता तो दुर्घटना भी हो सकती थी क्योंकि तब पानी अत्यधिक गर्म था; परन्तु गुरुकृपाके कारण ऐसा कुछ नहीं हुआ !-तनुजा ठाकुर



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