विद्यार्थियोंकी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए ?


granth pathan

सामान्यत: विद्यार्थियोंकी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए ?

दिनचर्या शब्दके ‘दिन’ अर्थात् दिन और ‘चर्या’ अर्थात् कृत्य/आचरण । हिंदु संस्कृति महान है । इस संस्कृतिमें बताया गया है कि प्रत्येकको प्रात: उठनेसे आरंभ कर, रात्रि सोनेतक कैसे आचरण करना चाहिए । इसीको दिनचर्या कहते हैं । बचपनसे ही उचित दिनचर्याका पालन करनेसे व्यक्ति सुसंस्कृत बनता है । बच्चो, यदि बचपनसे ही आपकी दिनचर्या हिंदु संस्कृतिके अनुसार अर्थात् प्राकृतिक नियमोंके अनुसार होगी, तो विद्यार्थी दशामें एवं बडी आयुमें भी आपको इससे पर्याप्त लाभ होगा । इसके लिए आप जैसे विद्यार्थियोंकी सर्वसाधारण दिनचर्या निम्नानुसार होनी चाहिए ।
प्रात: शीघ्र उठना
धर्मशास्त्रमें बताया है कि प्रत्येकको प्रात: सूर्योदयसे पूर्व उठना चाहिए । परंतु, आजकल अनेक बच्चोंकी, पढाई अथवा अन्य कारणोंसे रात्रि विलंबसे सोनेकी एवं प्रात: ८-९ बजे उठनेकी वृत्ति (आदत) बन गई है । (रात्रिमें देर तक) जागरण करना स्वास्थ्यकी दृष्टिसे हानिकारक है । इसके विपरीत, कहा जाता है कि शीघ्र सोने और शीघ्र उठनेसे आयु, स्वास्थ्य एवं धनसंपत्ति मिलती है ।

प्रात: सोकर उठनेके उपरांत बिछौनेपर पालथी मारकर करने योग्य कृत्य
रात्रिमें जब सब नींदमें होते हैं, उस समय भगवान सबकी रक्षा करते हैं । इस कारण प्रात: नींद खुलते ही सर्वप्रथम भगवानके चरणोंमें कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । तत्पश्चात् बिछौनेपर पालथी मारकर निम्नानुसार कृत्य करने चाहिए ।
१. करदर्शन : व्यक्तिकी हथेलियां एवं दस अंगुलियोंमें विविध देवता निवास करते हैं । ये देवता व्यक्तिकी दिनभर सहायता करते हैं । इन्ही हाथोंसे दैनंदिन (प्रतिदिनके) व्यवहार किए जाते हैं । बच्चो, प्रात: सोकर उठनेके उपरांत प्रथम करदर्शन (हथेलियोंका दर्शन) करें । करदर्शन करते समय दोनों हाथोंकी अंजुली बनाकर, उसमें मन एकाग्र कर निम्नलिखित श्लोक बोलें ।
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्द प्रभाते करदर्शनम् ।।
अर्थ : हाथोंके अग्रभागमें लक्ष्मी, मध्यमें श्री सरस्वती एवं हाथोंके मूलमें गोविंदका वास होता है । इसलिए प्रात: उठनेपर प्रथम हाथोंका दर्शन करें ।
(पाठभेद : हाथोंके मूलमें ब्रह्माका वास होता है ।)
भावार्थ : विद्या (श्री सरस्वती) एवं धन (लक्ष्मी) हो, तो हम सत्कृत्य कर पाते हैं ।
अनुभूति – कराग्रे वसते लक्ष्मी.. इस श्लोकका अर्थ समझकर उसका पाठ करते समय हथेलियोमें देवताओंके दर्शन होने लगना : प्रात: सोकर उठनेके पश्चात् मैं कराग्रे वसते लक्ष्मी … श्लोक बोलती थी; परंतु इसका अर्थ ज्ञात नहीं था । अर्थ समझकर श्लोकपाठ करते समय मुझे अपनी हथेलियोंके विशिष्ट स्थानोंपर लक्ष्मी, सरस्वती एवं गोविंदके दर्शन होने लगे । – कु. अवनी धारेश्वर (आयु ११ वर्ष), मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया.
२. भूमिवंदन : भूमि (जमीन) अर्थात् पृथ्वी अथवा भूमाता । बच्चो, भूमिपर आप खेलते हैं । भूमिके कारण मनुष्यको अनाज, साग-तरकारी, फल, पानी जैसी अनेक वस्तुएं मिलती हैं । अनाज बोनेके लिए तथा पानीके लिए कुआं बनानेके लिए भूमिको खोदा जाता है । उस समय होनेवाले सब आघात भूमि सहन करती है । छोटे-बडे सभीका बोझ वह संभालती है इसलिए प्रात: उठनेपर भूमिपर पैर रखनेसे पूर्व निम्नलिखित श्लोक बोलें ।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।।
अर्थ : समुद्ररूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वतरूपी स्तनोंवाली एवं भगवान श्रीविष्णुकी पत्नी हे भूमिदेवी, मैं आपको नमस्कार करता हूं । मैरे पैरोंका आपको स्पर्श होगा । इसके लिए आप मुझे क्षमा करें ।
तदुपरांत बिछौनेसे बाहर आकर ओढना-बिछौना भली-भांति तह कर, उचित स्थानपर रखना चाहिए । – तनुजा ठाकुर

 



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution