जब गुरु घरपर आयें तो क्या करना चाहिए ?


१. गुरुके आगमन के पूर्व घरकी सजावट फूल, बंदनवार, दीपोंकी माला (तेल या घीके दीपक हों; मोमबत्ती जलाने से बचें, क्योंकि मोमबत्ती तमोगुणी होती है) और रंगोलीसे करनी चाहिए | हमें संत तुकारामके शब्द सदैव याद रखने चाहियें, “जिस दिन घरमें संतका पदार्पण होता है, वह दिन स्वयंमें ही दीवाली या दशहरा होता है |” इससे गुरुके प्रति भावकी संवर्धनके साथ आध्यात्मिक प्रगति भी होती है | गुरुके आनेके निश्चित समयसे पूर्व आधे कटोरेमें दूध, एक गिलासमें गुनगुना पानी और उनके चरण पोंछनेके लिया तौलिये, प्रवेश-द्वारपर ही तैयार रखें | इसी प्रकार एक थालीमें गंध, हल्दी, कुमुकुम, अक्षत, पुष्प, निरंजन (दीपक), घी एवं गुरुको भेंट हेतु कुछ मिष्ठान, या मिश्री, उनकी आरतीके उतारनेके लिए तैयार रखें | हमें गुरुके स्वागतके लिए निश्चित समयपर घरके बाहर ही प्रतीक्षा करनी चाहिए | गुरुके आगमनके पश्चात उन्हें घरके भीतर सादर ले जाना चाहिए | हमें उनसे पहले घरमें प्रवेश करना चाहिए और उनसे विनती करना चाहिए कि वे घरकी चौखटपर रखे लकड़ीके पीढेपर पदार्पण करें | तत्पश्चात बांये हाथसे कटोरेसे दूध डालते हुए, दाहिने हाथसे उनके चरण-स्पर्श करते हुए दूधसे प्रक्षालित करें | दूधका कटोरा एक ओर रख कर, इसके पश्चात बाएं हाथसे गुनगुना पानी डालते हुए, दाहिने हाथसे उनके चरण धोएं | शहरोंमें टाईलोंके फर्श होनेके कारण पानीके जमा होनेकी संभावना रहती है | लकड़ीके पीढेके स्थानपर गुरुसे एक बडी परातपर खडे होनेका विनती करें | ऐसी परिस्थितिमें उनके चरण केवल एक चम्मच दूध व उसके पश्चात पानीसे धोएं | दूध एवं पानीके परातमें एकत्रित होनेकी संभावनाके कारण गुरु-चरणोंमें चिकनाहट हो सकती है, इस कारणसे दूधका कम प्रयोग करें | इसके पश्चात गुरुसे, गीले चरणोंसे, एक या दो पग बढनेकी विनती करें व चरणोंको तौलियेसे पोंछें | पांवके अंगूठोंका विधिवत पूजन, चन्दन, अक्षत, पुष्प व कुमकुमसे करें | इसी प्रकारका पूजन गुरुके मस्तकपर, भ्रूमध्य, आज्ञा-चक्रपर भी करें और गुरुको पुष्प भेंट करें या पुष्पमाला पहनाएं | तत्पश्चात निरंजन (प्रज्ज्वलित दीप) के साथ उनकी आरती सिरके चारों ओर तीन बार घुमाएं | उन्हें एक पेडा, या अन्य कोई भी मिष्ठान प्रस्तुत करें या उन्हें खिलाएं | अंततः उन्हें नमस्कार कर, उन्हें उनके कक्ष या आसन तक ले जायें | यदि गुरु कहें कि स्थूल रूपसे पूजन न किया जाए, तो शिष्यको उनकी आज्ञाका पालन करना चाहिए और गुरुका पूजन उनके आगमनपर सूक्ष्म-स्तरपर ही करें | कई अवसर ऐसे होते हैं, जब अनेक शिष्य किसी साधकके घरपर एकत्रित हो जाते हैं, तब सभी शिष्योंद्वारा पाद्य-पूजन असंभव हो जाता है, ऐसी स्थितिमें अन्य शिष्योंको पाद्य-पूजन सूक्ष्म-स्तरपर करना चाहिए | यदि लम्बी यात्राके पश्चात गुरु थके प्रतीत हो रहे हों, तो उन्हें चौखटपर खडे रखनेके स्थानपर उन्हें घरमें एक आसनपर बिठाएं और उनका विधिवत पूजन करें | यदि गुरु अत्यधिक थके हुए हों, उनका पूजन करनेके स्थानपर उन्हें विश्राम करने दें | विधिवत पूजन कुछ समय पश्चात भी किया जा सकता है | किन्तु, यह सब कृति करते समय मूल बिंदु ध्यान रखें कि बाह्य सजावटसे अधिक आवश्यक है कि गुरुद्वारा संस्तुतित साधना भली-भांतिकी जाये | गुरु बाह्य सजावटकी तुलनामें आतंरिक सजावटसे अधिक शीघ्र प्रसन्न होते हैं, अर्थात साधनाके माध्यमसे | गुरुके आगमनपर घरके सजावट, उनकी पसंदके व्यंजन बनानेका महत्त्व गुरुद्वारा बताई गयी साधनाकी तुलनामें १ प्रतिशत भी नहीं है, जब कि साधनाका महत्त्व १०० प्रतिशत है | गुरुके किसी स्थानमें प्रवासकी पूर्ण अवधिमें गुरु-पूजन, अन्य देवताओंके समान किया जाना चाहिए | यदि विधिवत पूजन न हो पाए तो मस्तकपर चन्दन, गंध व कुमकुम अवश्य लगाएं; क्योंकि गुरुके प्रवासके स्थानपर पूरी अवधिमें गुरु-पूजन आवश्यक होनेके कारण , देवी-देवताओं एवं गुरुके चित्रोंका विधिवत पूजन बहुधा संभव नहीं हो पाता है | ऐसेमें इस बातसे कोई अंतर नहीं पडता कि पूजन किया जाता है या नहीं | यदि संभव हो तो किसी अन्य व्यक्तिको यह पूजन करनेके लिए कहें | गुरुके प्रस्थानके समय उनके मस्तकपर कुमकुम लगायें व दीपकसे उनकी आरती भी करें | गुरुको आप कुछ भी अर्पण पूजनके समय ही, आगमन या प्रस्थानके समय करें | यदि यह संभव न हो, तो पूजनके मध्य में किसी और दिन करें |
२. अपने कार्यालयसे अवकाश ले, सतत गुरुके सान्निध्यमें रहें |
३. उनके स्नान हेतु जल एवं वस्त्र तैयार रखें | स्नानोपरांत उपरोक्त विधानसे विधिवत पूजन करें, उनके मस्तकपर गंध (चन्दन) द्वारा तिलक करें एवं उनके चरणोंमें पुष्प-अक्षत इत्यादि अर्पित करें | उनके मुख, हाथ-पैर धोनेके लिए पृथक तौलिये रखें | मुख व हाथ-पैर धोनेके पश्चात उन्हें हाथ-पांव धोनेके लिए तौलिया प्रस्तुत करें | उनके चरण, स्नान-कक्षके बाहर (यदि वे खडे) हों तो, पोंछें या उनके आसन ग्रहण करनेके पश्चात पोंछें | उनके लिए बनाए भोजनमें उनके प्रिय व्यंजन होने चाहियें और उनके पथ्यके अनुकूल होना चाहिए | यदि आप उन प्रतिबंधोंसे अनभिज्ञ हों, तो उनके किसी अभिन्न शिष्यसे पूछें | भोजनके उपरान्त उन्हें हाथ धोने हेतु जल और पोंछने हेतु तौलिया प्रस्तुत करें |
४. गुरुके वस्त्र इत्यादिका प्रक्षालन व इस्त्री स्वयं करें और उन्हें किसी अन्य सेवक या किसी और धुलाई-घरमें धुलवाना उचित नहीं है
५. गुरुको पंखा झलते समय, पंखा गुरुके श्वास या आपके अपने श्वासकी गतिके साथ मेल बनाये रखें | यह प्रक्रिया पंखेकी भांति यांत्रिक नहीं होनी चाहिए, जो भाव-रहित चलता रहता है |
६. गुरु-संग पधारी मंडलीमें प्रत्येक व्यक्तिका योग्य पद्धतिसे स्वागत करें |
७. जब गुरु घर पधारें, उनके आज्ञासे अन्य शिष्योंको, अन्य व्यक्तियोंको, जो संतोंके आदर-सत्कार व दर्शनके अभिलाषी हैं, उन्हें भी आमंत्रित करें | गुरु-दर्शन हेतु आये सभी व्यक्तियोंको जल-पान, भोजन इत्यादि विनम्रतापूर्वक अर्पित करें | उनके प्रवास इत्यादिका भी ध्यान रखें; क्योंकि वे सब गुरु-दर्शन हेतु पधारे हैं और अवांछित अतिथि नहीं हैं |

‘परम पूज्य गुरुदेव डॉ. जयंत बालाजी आठवले’ द्वारा लिखित ग्रंथ ‘गुरुकृपायोग’ से उद्धृत



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