उपासनाके एक साधकको जब मैंने बताया कि पिछले एक वर्षमें आपकी प्रगति नहीं हुई है तो उन्होंने कहा कि मुझे लगा कि आपको फल इत्यादि लाकर खिलाता रहूंगा एवं धनका त्याग करता रहूंगा तो मेरी प्रगति हो जायेगी ! अधिकांश धनाड्य साधक जो धनका त्याग करते हैं उन्हें ऐसा लगता है कि मात्र धनके त्यागसे उनकी अध्यात्मिक प्रगति हो जायेगी परन्तु ऐसा नहीं है, आपके पास जो है वह सब ईश्वरको अर्पण करना होता है, आपके पास धन है तो वह अर्पण करना होता है, शरीर है तो उससे भी सेवा करना चाहिए और मन है तो वह भी ईश्वरको अर्पण करें अर्थात् अपने दोषोंको दूर करें, माया के प्रति आसक्तिको न्यून करें, नामजप करें, गुरुकार्य कैसे बढे इस हेतु रात-दिन तडपसे विचार कर उसे क्रियान्वित करें, तभी द्रुत गतिसे अध्यात्मिक प्रगति संभव है ! -तनुजा ठाकुर (१७.१.२०१५)