भूकम्पसे पूर्व एवं उसकी तीव्रताकी समाप्तितक अत्यधिक कष्ट होना !


२५.४.२०१५ के दिवस प्रातःकालसे ही बिना किसी कारण मुझे अत्यधिक अम्लपित्तका (एसिडिटीका) कष्ट हो रहा था, मैंने सभी औषधियां ले लीं, साथ ही पैरोंमें भी अत्यधिक वेदना हो रही थी एवं सम्पूर्ण शरीरमें एक विचित्र प्रकारकी अस्वस्थता थी । वैसे तो व्रणकाका (ट्यूमर) उपचार हुए वह छठा दिवस ही था और उससे एक दिवस पूर्व मैं स्वस्थ थी; अतः यह कष्ट शारीरिक नहीं है, यह भी समझमें आ रहा था; किन्तु क्यों हो रहा है, यह नहीं समझ पा रही थी । अपनी नित्यकी साधना हेतु प्रातःकाल चार बजे उठी और तबसे ग्यारह बजेतक मैं अत्यधिक कष्टमें रही । एक साधिका श्रीमती गोयल जो मेरी सेवा हेतु आईं थीं, वे उस मध्य दो बार मेरे पैरोंमें बिंदुदाब पद्धति अनुसार उपचार भी कर चुकी थीं, मैं पित्तनाशक औषधियां भी प्रातःसे लेती जा रही थी, किन्तु कष्ट न्यून होनेका नाम ही नहीं ले रहा था । मैंने अपने मनको कष्टसे हटाने हेतु संगणकपर कुछ सेवा करनी आरम्भ की और ११.५६ मिनिटपर मुझे सर्वप्रथम भूकम्पके झटके अनुभव हुए । उसके पश्चात् ध्यानमें आया कि हमें त्वरित खुले एवं सपाट स्थानपर जाना चाहिए; अतः हम अपने आश्रमसे उतरकर नीचे आए तो सूक्ष्मसे ज्ञात हुआ कि आधे घण्टेमें और भी झटके आ सकते हैं; इसलिए हम उस स्थलसे सपाट स्थलकी और सभी साधकोंके साथ निकल गए । वहां हमें झटके तो अनुभव नहीं हुए किन्तु मुझे कष्ट होता रहा और हम सभी साधक आधे घण्टे जप करते रहे, मेरे पित्तका कष्ट अपने चरमपर था; किन्तु आधे घण्टे उपरांत वह अकस्मात शांत हो गया और अगले दिवस ज्ञात हुआ कि ३५ मिनिटतक नेपाल और भारतमें भूकम्पके झटके आते रहे । यह मेरे साथ प्रथम बार नहीं हुआ है, जब भी कुछ बडे स्तरकी आपदा घटित होनेवाली हो तो मुझे कुछ समय पूर्वसे ही कष्ट होने लगता है इससे ज्ञात होता है कि मेरे सूक्ष्म देहकी व्याप्तिमें एवं एकरूपतामें वृद्धि हुई है और ब्रह्माण्डमें घटित होनेवाले विनाशकारी  महत्वपूर्ण प्रसंगको भांप लेता है और इस कारण मुझे कष्ट होने लगता है । – तनुजा ठाकुर (२७.४.२०१५)



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