हिन्दुओं ! अपने कुलकी युवा पीढीको धर्म एवं राष्ट्रके कार्यमें आगे आने हेतु प्रेरित करें !


हिन्दू धर्मकी विडम्बना यह है कि एक ईसाईका कोई सम्बन्धी पादरी या नन बन जाए तो वह गर्वसे सबको यह बात बताता है, एक मुसलमानका कोई सम्बन्धी मौलवी बन जाए तो वह भी स्वयंको गौरवान्वित अनुभव करता है, उनका धर्मप्रेम तो इस सीमातक है कि कई इस्लामिक राष्ट्रोंमें वे अपने अल्पायु बालकोंको जिहादी बनाने हेतु आतंकवादियोंके हाथों सहर्ष सौंप देते हैं; परन्तु एक हिन्दूके घर यदि कोई युवा या युवती साधना करने लगे और राष्ट्र और धर्मके कार्य हेतु पूर्ण समय देनेका निर्णय ले ले तो घरके सभी सदस्य असुरक्षित हो जाते हैं और उन्हें अपने युवा सदस्यके इस निर्णयपर क्षोभ और लज्जा आती है और सभी मिलकर उसके मार्गमें या तो अडचनें निर्माण करते हैं या उसे सदैव हतोत्साहित करते रहते हैं, विशेषकर माता-पिता तो स्वयंको अत्यधिक असुरक्षित अनुभव करने लगते हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य होता है कि वे येन-केन-प्रकारेण अपनी संतानको पुनः मायामें लिप्त  करें ! हिन्दुओंकी यह स्वार्थी प्रवृत्ति धर्मग्लानिका एक मुख्य कारण है ।



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