शास्त्र वचन


यस्य   प्रसादादहमेव    सर्वं   मय्येव     सर्वं     परिकल्पितं   च ।
इत्थं  विजानामि   सदात्मरूपं  तस्यांघ्रिपद्मं  प्रणतोऽस्मि   नित्यम् ।।

अर्थ :  जिनकी कृपासे यह ज्ञान होता है कि हम ही सबमें हैं और सब हममें समाहित हैं; ऐसे आत्मज्ञानी श्रीगुरुके श्रीचरणोंमें नित्य नमन और पूजन करता हूं।



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