साधकोंकी अनुभूतियां


मेरा नाम प्राक्षी अग्रवाल है और वर्तमान समयमें, मैं अपने पतिके साथ ओमानमें रहती हूं ।
मैंने पूज्या तनुजा मांके विषयमें सबसे प्रथम बार यू-ट्यूबसे जाना था और गत वर्ष अक्टूबर २०१४ में उनके सम्पर्कमें आई थी । दिनांक ३/०२/२०१५ को प्रथम बार मैं पूज्य मांसे उपासनाके दिल्ली आश्रममें मिली । आश्रम जानेका वह दिवस मेरे जीवनका एक अविस्मरणीय दिवस रहेगा । आज उसी दिवसके सम्बन्धमें हुई एक अनुभूति आप सभीसे साझा करना चाहती हूं ।

उस दिवस आश्रमसे जाते हुए पूज्या मांने एक उपहार आशीर्वादके रूपमें दिया था । वह उपहार एक छोटेसे कपडेकी पोटलीमें था और उस समय पूज्या मांने बोला यह तुम्हारे लिए है इसे पहन लेना, वह मैंने उसी समय अपने बटुए (पर्स ) में रख लिया । उस समय मुझे लगा कि वह एक लोलक (लॉकेट) है ।  इसके पश्चात् जब मैं घर पहुंची तो भी मैंने उसे ‘पर्स’में ही रहने दिया और सोचा कि अगले दिन प्रातःकी पूजाके पश्चात् पहन लूंगी; परन्तु ओमान आनेके पश्चात् मेरे पतिको ज्वर आ गया और उसी कारण मैं उसे कुछ ४-५ दिन तक पहन नहीं पाई । तत्पश्चात् मैंने उसे एक सोमवारके दिन जब प्रातःके समय पहननेके लिए निकाला तो पाया कि वह एक ‘लॉकेट’ नहीं अपितु एक पायल है । वह एक सामान्य सी बिना किसी घूंघरूके अत्यंत सुन्दर पायल थी । मुझे पायल पहनना बहुत अच्छा लगता है; किन्तु मैंने अभी कुछ समय पूर्व ही जो पायल ली थी वह बहुत भारी थी और उसमें घूंघरू भी थे जिसके कारण वह उठते-बैठते कहीं न कहीं अटक जाती थी और इसी कारण मैंने उसे उतारकर रख दिया था । इसलिए बहुत समयसे मैं एक ठीक इसी प्रकारकी एक सामान्यसी पायल लेनेका विचार कर रही थी और यह बात मैंने अपनी पतिसे भी कही थी; किन्तु मैंने सोचा था कि, जब ससुराल जाऊंगी तो वहांसे लूंगी; क्योंकि वहांसे ही मैं ऐसी सब वस्तुएं लेती हूं; किन्तु जब अपने पास मैंने पूज्या मांके उपहार स्वरुपमें वैसी ही पायल देखी तो मैं बहुत आनंदित भी हुई और आश्चर्यचकित भी हो गई, कुछ क्षण बस सोचती रह गई कि उन्हें कैसे पता चला कि मुझे ऐसी ही पायलकी चाह थी ! इस उपहार रुपी आशीर्वाद और पूज्या मांके अपार प्रेमके लिए, हम पति-पत्नी दोनोंकी ओरसे उनको कोटि-कोटि कृतज्ञता ।



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