कर्णावतीके (अहमदाबादके) श्री. सतीशजीकी अनुभूतियां


पूज्या तनुजा मांसे संपर्क मेरा एक मित्रके माध्यमसे हुआ। वे उनकी ‘फेसबुक’की मित्रसूचीमें थे । उन्होंने मुझे पूज्या तनुजा मांके बारेमें बताया और मुझे उनसे जुडने हेतु कहा । मैंने अगले दिन ‘फेसबुक’में मित्रता हेतु विनती (फ्रेंड रिक्वेस्ट) भेजी और यह गुरुकृपा ही है, पूज्या मांके मित्रसूचीमें सहभागी होनेवालोंकी लम्बी पंक्ति होते हुए भी पूज्या मांने अगले ही दिन मुझे अपनी मित्रसूचीमें सहभागी कर लिया । मेरे मित्रके कारण ही तनुजा मांको मैं तो जानता था; परन्तु वे मुझे नहीं जानती थीं; क्योंकि उस समय उनकी ‘फेसबुक’ मित्रता सूचीमें ४९९१ मित्र थे और वैसे ही १२००० लोग उन्हें ‘फॉलो’ कर रहे थे; क्योंकि वे उनकी मित्रसूचीमें जुड नहीं सकते थे ।

ईश्वरकी कृपा हुई और १७ फरवरी २०१२ को वे मेरे घर आईं और अपने तीन दिवसीय कर्णावतीके प्रवासमें मेरे निवास स्थानपर रुकीं । मात्र तीन दिनके सान्निध्यमें उन्होंने हमारे जीवनमें इतना परिवर्तन ला दिया कि हमारे जीवन जीनेकी दिशा ही परिवर्तित हो गई । हमारे घरमें कुछ व्यक्तिगत स्तरकी समस्याएं थीं, जिनका हल आठ वर्षसे हमारे अनेक    सगे-सम्बन्धी, हमारा मित्रवर्ग एवं विशेष परामर्शदाता (counsellor) नहीं कर पाए; परन्तु पूज्या मांके एक वाक्यने वह कर दिया, जिससे मेरे जीवनको एक नूतन दिशा मिली । पूज्या मांके जानेके पश्चात हमारे जीवनमें अनेक सुखद, व्यावहारिक और आध्यात्मिक परिवर्तन हुए । हम पति-पत्नीका घरमें ‘टी.वी.’पर अनावश्यक कार्यक्रम देखकर समय व्यर्थ गंवाना पूर्णतः समाप्त हो गया और साधना करना, ग्रन्थ वाचन करना एवं अन्योंको साधना बताना, यह हमारी दिनचर्याका अविभाज्य भाग बन गया है और मन अनान्दित रहने लगा है ।

अनुभूतिका विश्लेषण : मेरेद्वारा श्री. सतीशजीको मित्रसूचीमें सहभागी करना एवं उनके घरपर रुकना, यह ईश्वरीय नियोजन था । वे कुछ वर्षोंसे महाराष्ट्रके उच्चकोटिके ब्रह्मलीन सन्त गोंदवलेकर महाराजसे जुडकर साधनारत थे । जब भी कोई जीवात्मा किसी उच्चकोटिके सन्त या उच्चकोटिके देवताकी आराधना भावपूर्वक करती है, गुरुतत्त्व उनका मार्गदर्शन करना आरम्भ कर देता है । मैं जब किसीके घर जाकर रहती हूं तो यह अवश्य जाननेका प्रयत्न करती हंत कि उनके घरतक मुझे पहुंचानेमें कौनसी शक्ति कार्यरत रहती है ? और मैंने पाया है कि जो भी भक्त किसी सन्त या गुरुकी, चाहे वह देहधारी हों, या उन्होंने देहत्याग कर दिया हो, उनकी भक्ति करते हैं, उन्हें ईश्वर अगले चरणका मार्गदर्शन करते हैं ।

वैसे ही यदि कोई भक्त राम, कृष्ण, हनुमान, शिव, दुर्गा, दत्तात्रेय या गणपति जैसे श्रेष्ठ देवताकी निष्ठापूर्वक आराधना करता है, तो भी उनका मार्गदर्शन ईश्वर किसी न किसी अध्यात्मविदके माध्यमसे करते हैं । श्री. सतीशजीके साथ भी यही हुआ । मायामें हमें सुखकी प्राप्ति हो सकती है, आनन्द नहीं मिल सकता । योग्य प्रकारसे साधना करनेपर आनन्दकी अनुभूति होती है । सतीशजी और उनकी पत्नीने योग्य प्रकारसे धर्माचारण आरम्भ कर दिया; इसलिए उन्हें व्यावहारिक अनुभूतियां मिलने लगीं और आनन्दकी अनुभूति भी  होने लगी ।)– (पू.) तनुजा ठाकुर

२.पूज्या मांके हमारे घरसे जानेके पश्चात, अगले दिन ध्वनि चक्रिका (सीडी) समान, हमें उनकेद्वारा किया हुआ दत्तात्रेयका नामजप, पूरे घरमें सुनाई देने लगा । हम दोनों पति-पत्नीने घरके सभी कक्षोंमें जाकर देखा कि कहीं ‘सीडी’ तो नहीं चल रही या भ्रमणध्वनिपर (मोबाइल) मन्त्रजप तो नहीं बज रहा है; परन्तु ऐसा कुछ नहीं था और पूज्या मांका नामजप सम्पूर्ण घरमें हमें स्पष्ट रूपमें भिन्न-भिन्न समयपर सुनाई दे रहा था ।

अनुभूतिका विश्लेषण : बिना किसी माध्यमके सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देना, इसे अनाहत नादकी अनुभूति कहते हैं । अनुभूतियां हमारी गुरु और ईश्वरपर श्रद्धाको बढानेहेतु ईश्वरद्वारा दी  जाती है ।– (पू.) तनुजा ठाकुर 

३.घरमें पितरोंके कष्टके निवारणार्थ पूज्या मांने हमें मासिक श्राद्ध करनेके लिए कहा था और उस दिन मेरी पत्नीको अनुभूति हुई कि साक्षात कुलदेवी वहां उपस्थित थीं । – श्री सतीश कर्णावती (२८.१२.२०१२)

अनुभूतिका विश्लेषण : हम आज्ञाका पालन जिस भावसे करेंगे, हमें उसी प्रकारकी अनुभूति होती है । मासिक श्राद्ध विधिमें एक देव ब्राह्मण और एक पितर-ब्राह्मणको भोजन करानेका विधान   है । उनका भाव अच्छा था । अतः देव ब्राह्मणसे पूर्व ही कुलदेवताके सूक्ष्म अस्तित्वकी अनुभूति हुई ।– (पू.) तनुजा ठाकुर 



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