डूमा कथेड्रलका सच


kveit4373s    जून २०१३में मैं प्रथम बार यूरोप गई । अल्प प्राणशक्तिके कारण मैं विदेशमें भी कहीं घूमने नहीं जाया करती हूं, मात्र धर्मप्रसार हेतु जितनी यात्रा करना आवश्यक है, उतना ही करती हूं । मुझे प्राकृतिक दृश्योंसे अत्यधिक प्रेम है; अतः वहां अल्प समयके लिए बैठना अच्छा लगता है, शेष कहीं जाना मैं टालती हूं; परन्तु इटलीके कुछ साधकोंने प्रेमसे आग्रह किया कि मुझे इटलीके मिलानमें स्थित  एक सुप्रसिद्ध प्राचीन गिरिजाघर, डूमा कथेड्रलको अवश्य देखना चाहिए तो मैं उन्हें दो कारणोंसे न नहीं कह पाई । एक तो सब एक टोली बनाकर मेरे साथ इसलिए जानेको उत्सुक थे कि उन्हें सत्संग मिलेगा और दूसरा कि मैं भी उस प्रसिद्ध कहे जानेवाले  गिरिजाघरका आध्यात्मिक शोध करना चाहती थी । मैं जब उस गिरिजाघरमें गई तो वहांकी सूक्ष्म स्थिति देख मैं आश्चर्यचकित हो गई, वह इतनी भयावह थी कि उसके सामने ‘भूतहा महल’ भी कुछ नहीं । सूक्ष्म अतृप्त आत्माओंने जैसे उसे कितने ही शतकोंसे वहां अपना घर बना रखा हो । वहां सूक्ष्मसे प्रत्येक कक्षमें कालिमा छाई हुई थी जो अत्यधिक भयावह थी । जो प्राचीन वस्तुएं संग्रहित थीं, उसमें भी अत्यधिक काला आवरण था । वहां जानेके कुछ क्षणमें ही मुझे मितली जैसे आने लगी और मेरी प्राणशक्ति वहांकी आसुरी शक्ति तीव्र गतिसे सोखने लगी । मैं तो वहां आध्यात्मिक शोध हेतु ही गई थी, यह वहांकी सूक्ष्म शक्तियोंको भी ज्ञात था; अतः मैं वहां सब कुछ निरीक्षण कर तुरन्त बाहर निकल आई । उस गिरिजाघरकी कलाकारी एवं उसके वास्तुसे भी अनिष्टकारी स्पंदन आ रहे थे ।
यद्यपि वहांपर एक प्रार्थना सभा भी है, जहां पादरी महोदय प्रार्थना करवाते हैं; परन्तु उस प्रार्थनाका भी प्रभाव वहांके अनिष्ट वातवरणमें एक प्रतिशत भी नहीं हो रहा था । वहां भारी संख्यामें प्रतिदिन अनेक पर्यटक आते हैं और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । सत्य कहा गया है – अज्ञानतामें आनन्द है !
मैं प्राचीन हिन्दू देवालयोंमें (मंदिरों) भी गई हूं, जहां नित्य पूजा अर्चना होती है, वहां मैंने अत्यधिक शांति और शीतलताकी अनुभूति पाई है; परन्तु अभीतक जितने भी प्राचीन गिरिजाघरोंको देखा है, सभीको भूतहा पाया है । इससे ही समझमें आता है कि हमारे देवस्थलोंमें इतने अधिक शुचिता एवं कठोर कर्मकाण्डके नियमोंका पालन क्यों किया जाता है ? हिन्दू धर्ममें जो भी कर्मकाण्डकी विधियां देवालयोंमें की जाती है उससे वहांके वास्तुकी शुद्धि नित्य होती है एवं सात्त्विक ऊर्जा निर्माण होनेसे प्रचण्ड प्रमाणमें सात्त्विकता रहती है ।
हिन्दुओ ! एक तो प्राचीन गिरिजाघरमें घूमने जाना पूर्णत: टालें और यदि जाना अति आवश्यक तो जानेसे पूर्व अपने अराध्य देवतासे अपने चारों ओर संरक्षक कवच मांगना न भूलें, अन्यथा वहांकी कुछ अनिष्ट शक्तियां आपके देहमें यदि प्रवेश कर जाए तो किंचित मात्र भी आश्चर्य न करें !
इससे समझमें आया कि पाश्चात्य संस्कृति और ईसाई धर्मका अध्यात्म अभी शैशवावास्थामें है । सात्त्विकताके अभावमें आज व्यापक स्तरपर पाश्चात्य देशोंमें गिरिजाघरोंको होटल एवं अन्य पर्यटकस्थलके रूपमें परिवर्तित किया जा रहा है । – तनुजा ठाकुर (२.६.२०१४)

 



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