राजा कालस्य कारणं (राजा ही कालका कारण होता है )


जब ईश्वरने इस सृष्टिका सृजन किया तो इसे सुचारू रूपसे चलाने हेतु एवं मनुष्यके लौकिक और पारमार्थिक उत्थान हेतु वैदिक सनातन धर्मकी भी संरचना की और धर्म अन्तर्गत राजधर्मके सिद्धान्तोंका प्रतिपादन भी किया जिससे सृष्टिमें अराजकता निर्माण न हो तथा यह सृष्टि योग्य एवं व्यवस्थित रूपसे चले ! राजधर्म अर्थात् राजाका धर्मकर्तव्य ! राजधर्मका पालन न करनेवाले राजाका समाजपर क्या प्रभाव पडता है ?, इस हेतु एक प्रसंग आपसे साझा करती हूं । एक बार युधिष्ठिरने भगवान श्रीकृष्णसे पूछा, “काल अयोग्य है; इसलिए दुर्योधनकी मति परिवर्तित हो गई है या दुर्योधन दुराचारी है; इसलिए काल प्रतिकूल आ गया है ?”  भगवान श्रीकृष्णने कहा, “राजा कलस्य कारणं” अर्थात् जैसा राजा होगा वैसा ही काल होगा ।

राजा दुर्जन होता है तो प्रजा भी राजा समान अयोग्य आचरण करती है और काल भी कलियुग कहलाता है ! राजा सात्त्विक और धर्माचरणी हो तो काल, सतयुग कहलता है । यह सिद्धान्त समाजकी सबसे छोटी इकाई परिवार या कुटुम्बपर भी लागू होता है ! आपने तो देखा ही होगा कि जिस घरके मुखिया या माता-पिता अधर्मी होते हैं अर्थात् माता सदैव ‘क्लब’ और ‘पार्टी’में ही विचरण करते हुए अपने सुखका विचार करती है और पिता मद्यपान करता हो, जुआ खेलता हो, सदैव धन अर्जन करनेमें लिप्त रहता हो तो ऐसे माता-पिता जो सनातन धर्मके चार पुरुषार्थ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इसमें मात्र काम और अर्थको प्राथमिकता देते हैं, उनके बच्चे स्वतः ही अधर्मकी ओर बढ जाते हैं और उनके घरमें रावणराज्य आ जाता है । आज कलियुग क्यों है ?; क्योंकि अधिकांशों घरोंमें कलियुग है ।

राजधर्मका सिद्धान्त किसी भी सामाजिक या व्यावसायिक प्रतिष्ठान, कार्यालय या समूह, सबपर लागू होता है ! राजाका अर्थ होता है मुखिया, तो यह सरलसा सिद्धांत समझ लें ! यदि घरमें सुव्यवस्था चाहिए तो गृहस्थने धर्मेण अर्थ: अर्थात् धर्मके आधारपर अर्थोपार्जन करें एवं धर्मेण कामः अर्थात् धर्मके आधारपर इच्छाओंकी पूर्ति करें तो ही मोक्षप्राप्ति हेतु हमारा मार्ग सुलभ होता है अर्थात् धर्मके आधारपर धन अर्जित कर उसका सदुपयोग करनेसे तथा धर्मके आधारपर इच्छाओंकी पूर्ति करनेसे हमारे कर्तव्योंके पालनसे पुण्य अर्जित होता है और यह पुण्य देवकृपा एवं गुरुकृपाके रूपमें कुछ काल उपरान्त फलित होता है ! आजका मुखिया चाहे किसी राज्यका हो या किसी राष्ट्रका हो वह धर्मपालन नहीं करता; अतः आज विश्वके सभी राष्ट्रमें अधर्मका बोलबाला है अर्थात् रावणराज्य है । मैं तो धर्मयात्राके मध्य अनेक ऐसे देशोंका भ्रमण कर आई हूं जिसे आजका समाज विकसित राष्ट्र कहता है; किन्तु वहां भी सर्वत्र तमोगुणका साम्राज्य है अर्थात् एक प्रकारसे रावणराज्य है, मात्र वहांके नियम अत्यधिक कठोर हैं और लोगोंको नियमोंके पालनकी शिक्षा बाल्यकालसे विद्यालयों और घरोंमें दी जाती है; अतः कुछ डरके कारण और कुछ अनुसाशनके कारण, वहां लौकिक स्तरका कुछ सीमा तक सुशासन है; किन्तु वैदिक सनातन धर्म अनुसार किसी भी राष्ट्रके सुशासनकी उपलब्धिका मापदण्ड है वहांके लोगोंद्वारा अध्यात्ममें प्रगति करना और वह तो विकसित राष्ट्रोंमें कहीं भी दिखाई नहीं देता; अतः आज सम्पूर्ण विश्वमें मुखियाको धर्म सिखाना अति आवश्यक हो गया है चाहे वह मुखिया किसी घरका हो, ग्रामका हो, जनपदका हो, राज्य या राष्ट्रका हो, तो ही सर्वत्र सुख-समृद्धि और शान्ति व्याप्त होगी और इस हेतु सभीको धर्मका महत्त्व जानना अति आवश्यक है ।

सर्वकालसे भारत विश्वका आध्यात्मिक गुरु रहा है; किन्तु पिछले एक सहस्र वर्षसे सामान्य हिन्दुओंकी अकर्मण्यताके कारण अधर्मकी व्याप्ति बढती चली गई और स्वतन्त्रताके पश्चात् तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय व्यवस्थाने, जो अल्प मात्रामें धर्म बचा था, उसका भी सत्यानाश कर दिया । सभीको धर्म और साधना सिखाना, यह आजके इस धर्मनिरपेक्ष अर्थात् अधर्मी लोकतन्त्रमें सम्भव नहीं; अतः हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना करना अति आवश्यक हो गया है ! हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना होनेके पश्चात् सभी प्रसार-माध्यमों, विद्यालयों, महाविद्यालयोंके माध्यमसे सभीको धर्मशिक्षण दिया जाएगा एवं साधना करने हेतु सभीको उद्युक्त किया जाएगा, जिससे सर्वत्र धर्मकी संस्थापना होगी और घरसे लेकर विश्व तक सुराज्यकी स्थापना होगी ! इस हेतु धर्मक्रान्ति कर दुर्जन राजकीय व्यवस्थाको सत्ताच्युत करना होगा तभी नवनिर्माण सम्भव है ! अनेक लोग मुझसे कहते हैं राजनेताओंके धर्माचरणी होनेसे क्या साध्य होगा; इसलिए आज यह विषय आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं, अभ्यास कर देखें, राजा या मुखिया कालका कारण कैसे होता है और उसके सात्त्विक और धर्मपरायण होनेसे सर्वत्र सुख और शान्ति कैसे फैलती है ?

यही राजधर्मका महत्त्व है । ध्यान रखें ! राजधर्म धर्मका अभिन्न अंग है ।

राष्ट्र और धर्ममें अद्वैत होता है, धर्म समाप्त हो जाए तो राष्ट्र स्वतः ही नष्ट हो जाता है या वहां आसुरी साम्राज्य स्थापित हो जाता है । अफगानिस्तानसे पाकिस्तानतक कभी वैदिक सनातन धर्मका साम्राज्य होता था; किन्तु वहांसे वैदिक धर्म नष्ट होते ही उन देशोंमें आसुरी रामराज्य स्थापित हो गया और आज उन देशोंकी स्थिति क्या है ?, यह तो आपको बतानेकी आवश्यकता नहीं है ! इसमेंसे अधिकांश राष्ट्र स्वयंको धर्मसापेक्ष कहते हैं । तो यह जान लें कि धर्मसापेक्ष राष्ट्रमें समाजका सर्वांगीण विकास होता है और यदि वह नहीं हो रहा है तो वह धर्म, जिसे समाज धर्म कहता है, वह धर्म नहीं है ! संसारमें धर्म मात्र एक है और वह है वैदिक सनातन धर्म, शेष सभी धर्म जिसे हम धर्म कहते हैं, सब पंथ है; क्योंकि धर्म ईश्वर निर्मित होता है और पंथ मानव निर्मित होता है । जिसकी निर्मिती होती है वह कालतक रहता है और तत्पश्चात् उसका विनाश हो जाता है; अतः सृष्टिके कालचक्रमें पंथोंका नाश सहज ही होता रहा है और होता रहेगा; किन्तु सनातन धर्म स्वयंभू होनेके कारण सर्वकालसे हो रहा है और आदिकाल तक रहेगा !  – तनुजा ठाकुर



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution