पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती


DNA में आज का पहला विश्लेषण हम बहुत दुखी मन से कर रहे हैं. क्योंकि हमारे पास एक ऐसी ख़बर आई है, जिसने मां और बेटे के रिश्ते को लहुलुहान कर दिया है. ख़बर ये है कि गुजरात के राजकोट में एक बेटे ने अपनी बीमार और बूढ़ी मां को छत से नीचे फेंककर उनकी हत्या कर दी. इस हत्या की वजह ये थी कि बेटा अपनी मां की बीमारी से परेशान हो गया था. हम उस संस्कृति और परंपरा के लोग हैं, जहां वेद पुराणों और उपनिषदों में मां को पूजनीय बताया गया है. मां के स्थान को सबसे ऊपर बताया गया है. मां-बाप की सेवा को हमारे देश में परम धर्म माना जाता है. महाभारत में जब यक्ष युधिष्ठिर से ये सवाल पूछते हैं कि पृथ्वी से भारी क्या है? तो युधिष्ठिर जवाब देते हैं कि माता पृथ्वी से भी भारी है. इसीलिए हमारे देश में कहा जाता है कि पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती. लेकिन ये सारी सिद्धांतवादी बातें… एक पत्थरदिल बेटे के सामने छोटी हो गईं.

इस हत्या को हुए 3 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. ये Video.. 27 सितंबर 2017 का है. इन तस्वीरों में जिस व्यक्ति को आप देख रहे हैं, उसका नाम संदीप नाथवाणी है. और वो एक प्राइवेट कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है. उसके साथ उसकी मां है. जिनका नाम है – जयश्री बेन नाथवाणी. 64 साल की जयश्रीबेन बीमार थीं. और ठीक से चल भी नहीं पाती थीं. 27 सितंबर को संदीप उन्हें छत पर पूजा करने के बहाने लेकर गया. और फिर आरोप है कि संदीप ने अपनी मां को छत से धक्का दे दिया. और चुपचाप अपने फ्लैट में वापस आ गया. उस वक्त इस घटना को आत्महत्या माना गया था. और पुलिस ने केस की फाइल बंद कर दी थी. लेकिन इस बंद फाइल में एक मां की चीखें दबी हुई थीं…शायद इसीलिए हत्या वाले दिन का वीडियो सामने आ गया.. और एक बंद हो चुका केस दोबारा खुल गया. और पता चला कि संदीप ने ही अपनी मां की हत्या की थी. क्योंकि वो अपनी मां की सेवा नहीं करना चाहता था.

संदीप ने पुलिस को बताया है कि उसकी मां Bed Ridden थीं और इसीलिए उनकी सभी दिनचर्याएं बिस्तर पर ही होती थीं. इससे संदीप परेशान हो गया था. पुलिस के मुताबिक संदीप की मां ब्रेन हैमरेज के बाद 14 सितंबर 2017 को अस्पताल से डिस्चार्ज हुई थीं. और 27 सितंबर को संदीप ने अपनी मां की हत्या कर दी. यानी ये व्यक्ति अपनी मां की ऐसी हालत से सिर्फ 13 दिनों में ही परेशान हो गया. अब सोचिए संदीप जब छोटा रहा होगा तो उसकी मां ने हर तरह से उसका ख्याल रखा होगा. ये ज़माने का सबसे क्रूर मज़ाक है कि दुनिया की कोई मां बचपन में अपने बच्चों को पालते हुए परेशान नहीं होती. लेकिन बुढ़ापे में उसके बच्चे.. सेवा करते हुए सिर्फ 13 दिन में थक जाते हैं. शायद इसीलिए इस युग को कलियुग कहा जाता है. क्योंकि हमारा समाज.. एक ऐसा समाज बन चुका है, जो बुज़ुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं.. उनकी हत्या कर देता है.

ये पूरा मामला एक गुमनाम चिट्ठी से खुला.. जो राजकोट पुलिस को मिली थी. उस चिट्ठी में संदीप नाथवाणी पर अपनी मां की हत्या करने का शक जताया गया था. इसके बाद पुलिस ने गहराई से छानबीन की और इस हत्या का पर्दाफाश किया. रिश्तों की दुनिया में ये ख़बर किसी बम ब्लास्ट जैसी है…  फर्क सिर्फ इतना है कि बम धमाकों में आवाज़ होती है.. लेकिन जब रिश्तों की हत्या होती है, तो दर्द भरी आवाज़ें सुनाई नहीं देती. अगर आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता से प्यार करते हैं तो आपको ये विश्लेषण देखकर बहुत बड़ा झटका लगा होगा.

हमारे देश में बुर्ज़ुगों की हालत बहुत दयनीय हैं…मातृदेवो भव:…पितृदेवो भव:…की परंपरा वाले भारत में बुज़ुर्गों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता. भारत की परंपराओं पर गर्व करने वाले लोग अक्सर कहते हैं कि भारत इसलिए एक महान देश है..क्योंकि यहां परिवार को बहुत महत्व दिया जाता है. मां-बाप का सम्मान किया जाता है, लेकिन सच ये है कि भारत में ज्यादातर बुजुर्गों के हालात अच्छे नहीं है.

पूरी दुनिया में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग 11.5% हैं. यानी कुल 700 करोड़ लोगों में से करीब 80 करोड़ बुज़ुर्ग हैं. और 2050 तक बूढ़े लोगों की ये संख्या दोगुनी हो जाएगी. भारत में भी बुज़ुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 2001 में भारत में 7 करोड़ 70 लाख बुज़ुर्ग थे. लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में बुज़ुर्गों की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है. और 2050 तक भारत में 30 करोड़ बुज़ुर्ग हो जाएंगे. भारत में बुज़ुर्गों के खिलाफ हिंसा भी बढ़ रही है. 2016 में 1 हज़ार 76 बुज़ुर्ग लोगों की हत्या हुई थी. भारत में ज्यादातर बुज़ुर्ग तो अपने बच्चों के साथ रह रहे हैं. लेकिन 20% बुज़ुर्ग ऐसे हैं, जो अकेले रहते हैं.

एक सर्वे के मुताबिक हमारे देश के 26% बुज़ुर्ग पुरुषों और 60% बुज़ुर्ग महिलाओं की कोई कमाई नहीं है. NSSO की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 34% बुज़ुर्ग काम करने को मजबूर हैं. 2015 की Helf Age India की एक स्टडी के अनुसार भारत में बुज़ुर्गों की आधी जनसंख्या को किसी न किसी तरह का दुर्व्यवहार सहना पड़ता है.



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


सूचना: समाचार / आलेखमें उद्धृत स्रोत यूआरऍल केवल समाचार / लेख प्रकाशित होनेकी तारीखपर वैध हो सकता है। उनमेंसे ज्यादातर एक दिनसे कुछ महीने पश्चात अमान्य हो सकते हैं जब कोई URL काम करनेमें विफल रहता है, तो आप स्रोत वेबसाइटके शीर्ष स्तरपर जा सकते हैं और समाचार / लेखकी खोज कर सकते हैं।

अस्वीकरण: प्रकाशित समाचार / लेख विभिन्न स्रोतोंसे एकत्र किए जाते हैं और समाचार / आलेखकी जिम्मेदारी स्रोतपर ही निर्भर होते हैं। वैदिक उपासना पीठ या इसकी वेबसाइट किसी भी तरहसे जुड़ी नहीं है और न ही यहां प्रस्तुत समाचार / लेख सामग्रीके लिए जिम्मेदार है। इस लेखमें व्यक्त राय लेखक लेखकोंकी राय है लेखकद्वारा दी गई सूचना, तथ्यों या राय, वैदिक उपासना पीठके विचारोंको प्रतिबिंबित नहीं करती है, इसके लिए वैदिक उपासना पीठ जिम्मेदार या उत्तरदायी नहीं है। लेखक इस लेखमें किसी भी जानकारीकी सटीकता, पूर्णता, उपयुक्तता और वैधताके लिए उत्तरदायी है।

विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution