नई दिल्ली : 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो वह जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 को खत्म कर देगी. बीजेपी ने अपनी इस चुनावी घोषणा पर नरम रुख अपना लिया है. केंद्र सरकार ने लोकसभा में कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं आया है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर मंगलवार को सदन में यह जानकारी दी.
हंसराज अहिर ने सदन को बताया कि फिलहाल सरकार इस मुद्दे पर कोई विचार नहीं कर रही है. अहिर ने एक लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि सरकार धारा 370 को हटाने के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं ले रही है.
बीजेपी के सांसद अश्वनी कुमार ने इस बारे में एक लिखित सवाल पूछा था. उन्होंने पूछा कि क्या सरकार संविधान से धारा 370 को हटाने के बारे में विचार कर रही है या नहीं.
2014 में ही कर दिया था मना
सत्ता में आने के कुछ दिन बाद ही केंद्र सरकार ने इस अनुच्छेद पर अपनी राय प्रकट कर दी थी कि इस अनुच्छेद को खत्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं है. तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय द्वारा पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में गृह राज्य मंत्री ने ‘ना’ में उत्तर दिया था. राय ने जानना चाहा था कि क्या सरकार का अनुच्छेद 370 को रद्द करने का कोई प्रस्ताव है.
अनुच्छेद 370
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक `अस्थायी प्रबंध` के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है. भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू और कश्मीर को यह `अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध` वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है. भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं. मिसाल के तौर पर 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था.
संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए. जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था. शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था। तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए कभी ना टूटने वाली, `लोहे की तरह स्वायत्ता` की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था
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