आजकल देखादेखी अनेक माता-पिता अपनी नन्हीं बच्चियोंको लडकोंवाला वस्त्र या पाश्चात्य वस्त्र पहनाकर गर्व अनुभव करते हैं; किन्तु इससे उन्हें बाल्यकालसे अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट हो जाता है और उनमें ऐसी अनिष्ट शक्तियां जो विपरीत लिंगकी होती हैं, उनका कष्ट होनेकी आशंका रहती है । साथ ही उसमें कुसंस्कारका भी जन्म होता है । मैंने अपने आध्यात्मिक शोधमें पाया है कि ऐसी बच्चियां जबतक युवा अवस्था तक पहुंचती हैं तो उन्हें मासिक धर्मसे या जननेन्द्रियोंसे सम्बन्धित कष्ट होने लगते हैं और विवाह होनेके उपरान्त उन्हें सन्तानोत्पत्तिमें भी अत्यधिक कष्ट होता है या सन्तान होती ही नहीं हैं । आपको मेरी बातोंपर विश्वास न हो तो किसी कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रमें जाएं और देखें कि किस प्रकार आजकी आधुनिक युवा स्त्रियोंको सन्तानोत्पत्तिसे सम्बन्धित कष्ट हो रहे हैं । पूर्व कालमें शारीरिक कारणोंके अतिरिक्त मात्र ५% स्त्रियोंको पितृदोष और प्रारब्धवश सन्तान उत्पन्न नहीं होती थी । आजके कालमें ८०% प्रतिशत सन्तानोत्पत्तिसे सम्बन्धित कष्ट, अनिष्ट शक्तियोंके कारण होता है । इसलिए “फैशन”के चक्करमें अपनी बच्चियोंके जीवनके जीवनको कष्टप्रद न बनाएं ।
हमारे एक परिचित व्यक्तिको छह पुत्रियां थी और उनकी एक पुत्री उतनी सुन्दर नहीं थी, वे उसे पुत्र समान मानकर उसे वैसे ही रखने लगे हैं । एक दिवस मैं उनके घर गई तो देखा उस युवा होती लडकीकी देह, अनेक अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशित थी और सबके सब पुरुष थे, उसकी चाल-ढाल, वर्तन सबकुछ पुरुषों जैसा था । मैंने उनके माता-पिताको चेताया कि वे अपनी भावनाओंमें बहकर, किस प्रकार अपनी पुत्रीका जीवन अनुचित दिशामें ले जा रहे हैं और उन्हें समय रहते अपनी चूकका ध्यान आ गया अन्यथा उस बच्चीका भविष्य तो निश्चित ही अंधकारमय था । उस युवा लडकीको भी समझाया और उसे सम्भवत: कुछ अनुभव भी हो रहा था; अतः उसने अपनी कृतिमें परिवर्तन लाना और साधना करना आरम्भ कर दिया | ऐसी बच्चियां युवा कालमें समलैंगिकताकी ओर आकर्षित होती हैं या पुरुष बनने हेतु अपना लिंग परिवर्तन कराती हैं या पुरुष भूतोंसे आवेशित होकर भिन्न प्रकारके कष्टसे ग्रस्त होती हैं । विदेशोंमें या आजके आधुनिक भारतीयोंमें भी समलैंगिकता अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशित देहके कारण बढ रही है; क्योंकि एक स्त्रीमें यदि पुरुष भूत होगा तो ही वह अपनी वासनाकी पूर्ति हेतु किसी स्त्रीसे सम्बन्ध स्थापित करेगा ! यही सत्य पुरुषके साथ भी है। ऐसे लोगोंने सतर्क होकर धर्मपालन एवं साधना करनी चाहिए अन्यथा वे मात्र अनिष्ट शक्तियोंकी कठपुतली बनकर रह जाते हैं ।
एक युवा लडकीमें एक ट्रक चालकका भूत प्रवेश कर गया था, वह मात्र पन्द्रह वर्षकी आयुसे सब प्रकारके वाहन, ट्रक्टर, मोटरसाइकिल स्वतः ही चला लेती थी, एक दिवस वह हमारे सत्संगमें आई थी तो उसके भीतरका भूत प्रकट हो गया और गति मांगने लगा, जब मैंने उससे पूछा कि वह उसके देहमें कैसे घुस गया तो उसने बोला कि वह उसके पुरुषवाले वस्त्र देखकर भ्रमित होकर घुस गया ! यह सब आपको कथाएं नहीं बता रही हूं, सत्य तथ्य हैं, ध्यान रहे स्त्रीकी देह अनिष्ट शक्तियोंके लिए पोषक स्थान होती है; अतः स्त्रियोंको सदैव ही सतर्क रहना चाहिए और धर्मपालन करना चाहिए । – तनुजा ठाकुर
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