एक व्यक्तिने पूछा है कि क्या सूक्ष्म इन्द्रियोंकी प्रक्रिया सीखते समय हमें कष्ट हो सकता है ?


यह प्रश्न उसी प्रकार है जैसे कोई कमांडो बनना चाहता हो; किन्तु उसके प्रशिक्षणके मध्य उसे कोई कष्ट तो नहीं होगा यह प्रश्न पूछता हो !
   गत एक सहस्र वर्षोंसे हिन्दुओंके योग्य प्रकारसे धर्माचरण और साधना नहीं की है; इसलिए सौ प्रतिशत लोगोंको अनिष्ट शक्तियोंद्वारा कष्ट है, ऐसेमें उसे सबसे पहले अपनी व्यष्टि स्तरकी शुद्धि करने हेतु साधना करनी पडती है, जिसमें उन्हें व्यष्टि स्तरपर कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियों कष्ट देकर अवरोध निर्माण करती हैं और उसके पश्चात समष्टि स्तरपर जब कार्य करना आरम्भ करते हैं तो समष्टि स्तरके आघात सहन करने पडते है । वैस ही जैसे पहले कमाण्डोको प्रशिक्षण लेते समय अत्यधिक श्रम करना पडता है और उसके पश्चात सदैव ही एक नूतन चुनौतीपूर्ण और प्राणघातक परिस्थितिमें उसे कार्य करना होता है ।  सूक्ष्मका क्षेत्र भी ऐसा ही है; इसलिए जैसे जिनमें शारीरिक कष्टको सहन करनेकी क्षमता नहीं हो, उन्होंने कमांडो बननेकी इच्छा नहीं रखनी चाहिए, वैसे ही जिन्हें साधना हेतु कष्ट उठानेकी प्रवृत्ति न हो उन्होंने सूक्ष्म इन्द्रियोंको जागृत कर, सूक्ष्म क्षेत्रमें कार्य करनेकी इच्छा नहीं रखनी चाहिए । वैसे भी साधनाका अर्थ तप होता है, जिस तपमें शरीर, मन एवं बुद्धि तपे नहीं अर्थात उसे कष्ट न हो, वह साधना कैसे हो सकती हैं ? किसी भी खरे साधकसे पूछें, साधनाका मार्ग कितना कठिन है ! अतः सूक्ष्म इन्द्रियोंको जागृत करनेमें भी कष्ट होता ही है और उसके पश्चात आप सूक्ष्म क्षेत्रमें जितनी गहराईमें जाएंगे, कष्ट उतना ही अधिक होता है, किन्तु जैसे एक कमाण्डो सदैव चुनौतीपूर्ण परिस्थितियोंका या युद्धक्षेत्रमें जाने हेतु लालायित रहता है, वैसे सूक्ष्म जगतमें कार्य करनेमें उतना ही अधिक आनन्द मिलता है, सदैव ही नूतन तथ्य ज्ञात होते हैं, ऐसा कह सकते हैं, ‘it is an adventurous journey full of callenges’, इसलिए जिन्हें चुनौतियां अच्छी लगती हैं, जिनमें मानसिक स्थिरता है, वे ही इस प्रकियाको कर सकते हैं; किन्तु इसे योग्य व्यक्तिके संरक्षणमें सीखनेकी आवश्यकता होती है और यह कोई तान्त्रिक प्रक्रिया नहीं है, यह तो एक वैदिक परम्रा है, मैं इस विधापर एक सूत्रबद्ध रीतिसे एक प्रणाली विकसित करनेपर भी शोध कर रही हूं, जो सरल और सर्व ग्राह्य हो और जिसे हिन्दू राष्ट्रमें शिक्षण प्रणालीमें अन्तर्भूत किया जा सके ! कलियुगी जीवको धर्म और साधनामें टिकाए रखने हेतु उनकी सूक्ष्म इन्द्रियोंको जागृत रखना अति आवश्यक है, जिसे उन्हें उचित और अनुचितका, धर्म और अधर्मका सदैव बोध रहे !  



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