कुमार्गीको दण्डित करना, धर्म एवं न्याय सिद्धान्त अनुसार उचित है


एक जिज्ञासुने ‘धर्मधारा’के एक सुवचनका सन्दर्भ देते हुआ पूछा है कि आपने लिखा है कि परमेश्वरका मन जीतने हेतु सभीसे प्रेम चाहिए तो ऐसेमें जो समाजकण्टक हिन्दू धर्म विरोधी हैं या जो राष्ट्र विरोधी तत्त्व हैं और जो सतत हिन्दू धर्मपर एवं राष्ट्रपर आघात करते रहते हैं, क्या उनके प्रति भी प्रेम रख, उनके अक्षम्य अपराधोंको क्षमा कर उनसे प्रेम करना चाहिए ? इसका उत्तर बडा ही सरल है । क्या यदि हमसे कोई अक्षम्य चूक होती है तो हमारी माता हमें दण्डित नहीं करती हैं ? क्या उनकेद्वारा दण्डित किया जाना उनकी हमारे प्रति घृणाका सूचक है तो सभीका उत्तर होगा, नहीं । हमारी माता हमारी अक्षम्य चूकोंपर हमें प्रेमवश दण्डित करती हैं, जिससे हम पुनः वैसे चूक न करें एवं अधर्मकी ओर प्रवृत्त न हो, उसीप्रकार समाजकण्टकों, राष्ट्रद्रोहियों, हिन्दू धर्मद्रोहियों, दुर्जनों एवं भ्रष्टाचारियोंको भी हमें इसी भावसे पाठ पढाना चाहिए, जिससे उन्हें अपने अपराधोंका बोध हो एवं उन्हें दिए गए दण्डके परिणामस्वरूप, वे इस जन्ममें या अगले जन्ममें सन्मार्गका अनुसरण कर सके । धर्मसिद्धान्त अनुसार पापकर्म करनेवालेको दण्ड देना, एक प्रकारसे उसके प्रति अपने प्रेमकी अभिवयक्ति ही है, जिससे उसका हित साध्य होता है । जब कोई प्रेमसे समझानेपर या बौद्धिक रूपसे उसे सावधान करनेपर भी कुमार्गसे नहीं हटे तो उसे दण्डित करना धर्म एवं न्याय सिद्धान्त अनुसार उचित है; क्योंकि वे दण्डके ही पात्र होते हैं एवं दण्ड ही उसे अपनी चूकका भान कराता है और वह अधर्मसे विमुख करता है ।



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