कुत्ते-बिल्ली जैसे पशुओंको घरमें अपने साथ कक्षमें रखनेसे वास्तुमें अशुद्धि कैसे फैलती है ? (भाग – २)


घरमें यदि अतिरिक्त कक्ष या स्थान न हो तो कुत्ते-बिल्ली जैसे पशुको अपने घरमें न रखें और यदि रखते हैं तो उसे घरमें प्रवेश न दें, इससे घरमें अपवित्रता निर्माण होकर वास्तुदोष लगता है, इसपर ‘फेसबुक’पर श्री प्रशान्त वर्माने एक प्रश्न पूछा है कि भगवानके लिए सभी प्राणी समान होते है तो कुत्ता-बिल्ली जैसे पालतू पशुके घरके भीतर रहनेसे घर अपवित्र कैसे हो सकता है, यदि ऐसा है तो यह नियम मनुष्योंपर भी लागू होना चाहिए ?  

उत्तर : कुत्ते-बिल्ली जैसे पशु प्रवृत्तिसे मांसाहारी होते हैं; इसलिए वे, उनके केश व मल-मूत्र, सब तमोगुणी होते हैं, चाहे आप उन्हें मांसाहर न करवाएं; किन्तु जीवका वर्गीकरण उसकी प्रवृत्ति अनुरूप सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक श्रेणीमें किया गया है । मैंने सदैव अपनी माताजीको प्रथम रोटी गायके लिए एवं अन्तिम रोटी कुत्तेके लिए निकालते देखा था; चूंकि गायमें देवताका वास होता है, इसलिए उसे प्रथम रोटी देना एक प्रकारका अपने भोजनका नैवेद्य लगाने समान है और कुत्ता सदैव ही हमारे घरोंका अंग रहा है; अतः उसे भी भोजन मिलना चाहिए, इसलिए अन्तिम रोटी उसे दी जाती थी । हमारी माता हमें कभी अन्तिम रोटी खाने नहीं देती थीं, वे कहती थीं कि अन्तिम रोटी खानेसे बुद्धि मोटी है, प्रसंग आनेपर त्वरित निर्णय हम नहीं ले सकते हैं, वस्तुत: पञ्च महायज्ञ अन्तर्गत अपने आसपासके जीवोंको पालन-पोषण करना, यह गृहस्थका धर्म होता था और इसका सुन्दर विधान हमारी दिनचर्यामें अंगीकृत था; अतः हमारी संस्कृतिमें कुत्तेका विचार नहीं किया जाता था, ऐसा नहीं था; किन्तु हिन्दू धर्ममें प्रवृत्ति अनुरूप सभीका स्थान निर्धारित है; धर्मशिक्षण न मिलनेके कारण आज सबकुछ विपरीत हो रहा है ।
  जितने प्रेमसे आज कुछ लोग अपने कुत्ते या बिल्लीका मल (शौच) उठाकर फेंकते हैं, क्या वे उतनी ही आत्मीयतासे गोबरको स्पर्श कर सकते हैं, उनकी उपलें बना सकते हैं या गोशालामें जाकर सेवा कर सकते हैं ? उत्तर स्पष्ट रूपसे ‘नहीं’ मिलेगा, आज प्रत्येक गोशालामें गोकी सेवा करनेवाले कार्यकर्ताओंकी कमी है; अनेक गोशालामें तो गाएं उचित सेवा न मिलनेके कारण मृत्युको प्राप्त होती हैं, यह बात भी किसीसे छिपी नहीं है ! हमारी संस्कृतिमें गायकी सेवाको महत्त्व दिया जाता था, पाश्चात्योंद्वारा पोषित निधर्मी राज्यकर्ताओंने गौको हमारी संस्कृतिसे निकाल दिया, इसलिए आज नगरोंमें घरोंमें गाय, आप नहीं रख सकते; किन्तु दो कक्षवाले घरमें एक कुत्तेको अवश्य रख सकते हैं और लोग रखते भी हैं; यह सामान्य बात नहीं, इस देशको देवत्वहीन करनेकी यह एक सोची समझी रणनीति है, जिसके शिकार अनेक हिन्दू हो गए हैं ।
 क्या नगरका नियोजन करते समय प्रत्येक वसतिगृहमें (मोहल्लेमें) एक गोशाला हो, इसका नियोजन नहीं हो सकता था; किन्तु ऐसा जान -बूझकर नहीं किया गया; क्योंकि हिन्दू धर्मके सर्व अस्थास्थानोंको नष्ट कर इस देशको भ्रष्ट करना, यही अंग्रेजोंका उद्देश्य था और स्वतन्त्रता पश्चात उनकेद्वारा पोषित राजनेता उनके ही पदचिन्होंपर चलकर इस देशका सर्वनाश कर रहे हैं; तभी कभी गाय पालनेवाले हिन्दू आज कहते हैं, अपने घरके बैठकमें या शयनकक्षामें कुत्ता क्यों न रखें ? यदि प्रत्येक विद्यालय और मन्दिरमें एक छोटीसी ही सही गोशाला होती तो क्या आज लोग अपना समय कुत्ते और बिल्लीको देनेके स्थानपर गायकी सेवाको नहीं देते ! क्या आज विदेशी-कुत्ता-पालन-उद्योग इस देशमें फलता-फूलता ? जी हां, हममेंसे कितने हिन्दू अपने घरमें देसी कुत्तेको पालते हैं किञ्चित सोचें ! आपका कुत्ता-प्रेम मात्र विदेशी कुत्तोंके लिए क्यों है, क्या देशी कुत्ते, कुत्ते नहीं होते ? आपको बता दें इस देशके देशी कुत्तेसे विदेशी संकर (हाइब्रिड) कुत्ता और अधिक तमोगुणी होता है और उसे अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट भी सामान्य देशी कुत्तेसे बहुत अधिक होता है, मैंने अधिकांश विदेशी कुत्तोंको अनिष्ट शक्तिसे आवेशित पाया है । मुझे ज्ञात है आपको सब कुत्तेको पालनेवालोंको मेरी बातोंसे कष्ट हो रहा होगा; इसलिए साधना करे, सूक्ष्म इन्द्रियोंके जागृत होनेसे आपके सर्व भ्रम स्वतः ही दूर हो जाएंगे ! (क्रमश:)  – तनुजा ठाकुर



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