किसी सुप्रसिद्ध गुरुके मार्गदर्शनमें साधना करनेवाले, एक साधक ‘उपासना’द्वारा आयोजित सामूहिक जपयज्ञमें जब प्रथम दिवस आए तो जप आरम्भ होते ही वे विचित्र प्रकारकी मुद्रा कर, हिलने-डुलने लगे । मैंने पूछा, “क्या हुआ, तो वे कहने लगे, मेरे गुरुने कहा है कि जप करते समय, मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, इसलिए ऐसा होता है ।” मैंने कहा, “आपके शरीरमें अनिष्ट शक्ति है, वह नामजपकी शक्तिसे प्रकट होकर, अपनी साधना करती है और ये मुद्रा भी वही बनाती हैं, आपके शरीरमें एक हठयोगी साधककी अतृप्त आत्मा है, वही यह सब करती है ।” मैंने जान बूझकर यह तथ्य, सभी साधकोंके समक्ष कहा और उन्हें परम पूज्य भक्तराज महाराजके (हमारे श्रीगुरुके श्रीगुरुके) छायाचित्र देखकर नामजप करने हेतु कहा । अगले सत्रमें वे सामान्य रूपसे जप कर रहे थे; क्योंकि सबके समक्ष यह बतानेसे उनका अहम् भी थोडा न्यून हो गया था और वे लज्जावश वे उस शक्तिको प्रकट नहीं होने दे रहे थे और अगली बार जब वे आए तो उनका हिलना डुलना बन्द हो गया था ! अनेक बार कुण्डलिनी जागृत होनेसे शरीर हिलता है, किन्तु शरीर स्वतः ही हस्त और पांवकी मुद्राएं नहीं करता है ! जब तक सूक्ष्मका ज्ञान न हो तब तक ऐसी स्थितयोंकी पूर्ण सत्यताका बोध नहीं हो सकता है ।
सूक्ष्मकी जानकारी न होनेके कारण उनके गुरु या उनके मार्गदर्शक साधकने उनका योग्य मार्गदर्शन नहीं किया और अनेक वर्ष उनके शरीरमें रह रही अनिष्ट शक्ति, उनके माध्यमसे अपनी साधना करती रही । देखें, आजके कलियुगी गुरु किसप्रकार अपने शिष्योंका मार्गदर्शन करते हैं !
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