कल रात्रिमें जब ‘धर्मधारा श्रव्य सत्संग’ आश्रमके चलभाषद्वारा (मोबाइलद्वारा) ‘व्हाट्सएप्प’के भिन्न गुटोंमें प्रेषित किया जा रहा था तो दो चलभाषसे सभी सत्संग प्रेषित हो गए; किन्तु एक चलभाष जिसमें १०० गुट हैं, उसका ‘व्हाट्सएप्प’ रुक गया, एवं साधिकाने अथक प्रयास किया, तब भी वह आरम्भ ही नहीं हुआ । सत्संगके प्रसारणके दस मिनिट पूर्वसे अकस्मात बिना किसी कारण मुझे अम्लपित्त होने लगा । जब साधिकने आकर बताया कि सत्संग एक चलभाषमें नहीं जा पा रहा है तो मैंने उनसे सब पर्याय पूछे तो उन्होंने कहा, सब करके देख लिया है । मैंने कहा, सूक्ष्म युद्ध चल रहा इसका प्रभाव उसपर पड गया है । अब युद्ध समाप्त होनेपर ही वह ठीक होगा । उसे मेरे कक्षमें बंद कर छोड कर चले जाएं । मैं भी कष्ट होनेके कारण रात्रि साढे दस बजे ही सोने चली गई, जब प्रातः जब तीन बजे अपनी नित्य साधना हेतु उठी तो देखा कि व्हाट्सऐप्प अपने आप चलने लगा ! धर्मप्रसारके साहित्योंपर इसप्रकारके आघात हमारे लिए सामान्य बात है । कल रात्रिमें इसलिए सौ गुटोंमें सत्संग प्रेषित नहीं हो पाया ।
कल सत्संग प्रेषित करनेसे दस मिनिट पूर्वसे ही मुझे कष्ट होने लगा था, इस बार पितृपक्ष हेतु वह प्रथम सत्संग था एवं धर्मधारा सत्संगके प्रसारमें इस पक्षमें तीन गुणा अधिक वृद्धि होगी, यह आघात इसलिए था ! है न बडा विचित्र, अनूठा और रुचिकर जगत ! अनिष्ट शक्तियांको मार खानेकी वृत्ति होती है, यह जानते हुए भी की ईश्वरीय कार्यमें विघ्न उत्त्पन्न करनेसे उन्हें दण्ड मिलेगा, वे ऐसा बारम्बार करती हैं ! इसलिए कहते हैं कि दुष्ट लतखोर होते हैं ! मार खानेपर वे स्वतः ही सुधर जाते हैं ! – तनुजा ठाकुर (२५.९.२०१८)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ