जैसे एक शेरनी अपने बच्चेको मुंहमें ले ले, तो वह उसे नहीं छोडती, उसीप्रकार शिष्यमें यदि पात्रता हो और वह गुरुको छोडना भी चाहे तो गुरु उसे नहीं छोडते । सन्त कबीरदासने कहा है, गुरु मिलना अपेक्षाकृत सरल है, सत्शिष्य मिलना अति दुर्लभ है; अतः शिष्य बनने हेतु अपने अन्दर मुमुक्षुत्व, दृढता, आज्ञापालन, निडरता, नम्रता, शरणागति जैसे दिव्य गुण आत्मसात् करने चाहिए; आपके जीवनमें उच्च कोटिके सद्गुरुका स्वतः ही पदार्पण हो जाएगा । – पूज्या तनुजा ठाकुर
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