श्रीमद्भागवत गीतासे पाकिस्तानी व्यक्तिका हृदय परिवर्तन, कारावाससे मुक्त होनेपर साथमें ले गया गीता, पत्रमें लिखा भारत-पाकिस्‍तान एक हो जाएं !


नवम्बर ४, २०१८

जासूसीके आरोपमें भगवान कृष्‍णकी जन्‍मस्‍थलीमें (जेल) वर्षों लगनेके पश्चात् पाकिस्‍तानी कैदी जलालुद्दीनका मन भी परिवर्तित हो गया । १६ वर्षका दण्ड भोगनेके पश्चात् रविवार, ४ नवम्बरको मुक्तिके पश्चात् जब उसे देश भेजा जाने लगा तो उसने श्रीमद्भागवत गीता साथ ले जानेकी इच्‍छा प्रकट की । जेल अधिकारियोंने उसकी इच्‍छाको सहर्ष पूर्ण किया । जलालुद्दीन गीता साथ लेकर दिल्‍लीसे आए विशेष दलके साथ वाराणसीसे अमृतसरके लिए रवाना हो गया । सोमवारको उसे वाघा बार्डरपर छोड दिया गया ।
दरअसल, वाराणसीके सैन्य क्षेत्रमें वायुसेना अधिकारीके पाससे १६ वर्ष पूर्व पाकिस्‍तानी जलालुद्दीनको जासूसी करनेके आरोपमें बन्दी बनाया गया था । पाकिस्‍तानके सिन्ध प्रान्तके ठट्ठी जनपदके रहने वाले जलालुद्दीनके पाससे सेनासे सम्बन्धित पत्र व सैन्य शिविरके मानचित्र मिले थे । तब से वह शिवपुर केन्द्रीय कारागृहमें बंद था ।
बताया गया है कि कारावासमें उसका जीवन ही परिवर्तन हो गया । जलालुद्दीन आगेकी शिक्षा करनेके साथ श्रीमद्भागवत गीताका भी अध्‍ययन करने लगा । कारागृहसे ही उसने माध्यमिक, बीए और एमए तककी शिक्षा पूर्ण की और इलेक्ट्रीशनका पाठ्यक्रम भी किया । शिवपुर केन्द्रीय कारागृहके वरिष्‍ठ अधीक्षक अम्बरीश गौडका कहना है कि दण्ड भोगनेके मध्य जलालुद्दीनके जीवन और सोचमें आए परिवर्तनका साक्ष्य है कि जब वह स्वदेश वापसीके लिए निकला तो श्रीमद्भागवत गीता साथ ले गया ।

जलालुद्दीनने रविवारको रिहा होनेसे पूर्व एक पत्र जेल अधिकारियोंकेद्वारा गृह मन्त्रालयको भेजा । पत्रमें उसने लिखा है, “मेरी इच्छा है कि यूएसए, यूके, यूएई की भांति ही हमारे सार्क देशसे भी सीमा समाप्त हो जाए । हम सब (भारत-पाकिस्‍तान और अन्‍य) एक हो जाएं तो कोई भी देश बुरी दृष्टिसे देखनेका साहस नहीं कर सकेगा ।”

जलालुद्दीनने पत्रमें यह भी लिखा है कि १६ वर्ष हिंदुस्‍तानके कारावासमें गुजारनेके पश्चात् उसे कभी यह आभास नहीं हुआ कि वह दूसरे देशके कारावासमें है । कुछ कट्टरपंथी लोगोंने तो दोनों देशोंको भिन्न करवा दिया, लेकिन हृदयको नहीं कर सके । जेलमें मिले प्रेम और आश्रयने न घर की याद आने दी और न कभी यह एहसास होने दिया कि वह अपने देशसे दूर है ।


जलालुद्दीनको वर्ष २००३ में स्‍थानीय न्यायालयने भिन्न प्रकरणमें ३३ साल सश्रम कारावासका दण्ड सुनाया था । बादमें उच्च न्यायालयमें विनती किए जानेपर उसके दण्डको कम करके १६ वर्ष कर दिया गया था । वर्ष २०१७ में न्यायालयने १६ वर्षका दण्ड पूरी हो जाने पर जलालुद्दीनको रिहा करनेका आदेश तो दे दिया था, लेकिन गृह मन्त्रालयसे अनुमतिकी प्रतिक्षामें उसे एक वर्ष और कारावासमें व्यतीत करना पडा । अब जेल प्रशासनको गृह मंत्रालयका आदेश मिलनेपर जलालुद्दीनको बाघा बार्डर तक छोडनेकी प्रक्रिया पूरी की गई ।

“सम्भवतः इसलिए ही जिहादी और धर्मान्ध सनातन व हिन्दुओंसे इतने भयभीत रहते है । सनातनमें वह शक्ति है कि वह किसीका भी हृदय परिवर्तन कर सके; अतः हिन्दुओं अपनी इस धरोहरपर गर्व कर इसका पालन करें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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