हरियाणा शासनका प्रशंसनीय निर्णय, विश्वविद्यालयोंमें आर्यभट्ट, वाल्मीकि और हिन्दू दर्शनपर होगा शोध !


दिसम्बर १५, २०१८

हरियाणाके विश्वविद्यालयोंमें अब किसी प्राचीन दर्शन, ग्रन्थ, सन्त-महात्मा और ऋषि-मुनिपर शोध करनेका निर्णय लिया गया है । हरियाण राज्य उच्च शिक्षा परिषदने राज्य शासनके निर्देशपर निर्धारित किया है कि अब विश्वविद्यालय शोधके काममें तीव्रता लाएंगे, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर स्थान अच्छा हो सके । परिषदके आग्रहपर अब तक ११ सरकारी विश्वविद्यालयों व १७ निजी विश्वविद्यालयोंने अपने शोध विषयका चयन कर लिया है । परिषदके प्रवक्ताके अनुसार गत दिवसोंमें सभी विश्वविद्यालयोंके कुलपतियोंकी बैठक राज्यपालकी अध्यक्षतामें हुई थी, जिसमें निर्णय लिया गया था कि प्रत्येक विश्वविद्यालय किसी प्राचीन दर्शन, ग्रन्थ, संत-महात्मा और ऋषि-मुनिपर शोध प्रकाशित करेंगे ।
हिसारके गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालयमें महर्षि वाल्मीकिपर शोध पुस्तकका प्रकाशन किया जाएगा, जबकि गुरुग्रामके स्टारेक्स विश्वविद्यालयके शोधका विषय आर्यभट्ट रहेगा । महर्षि मारकण्डेश्वर विश्वविद्यालय वैदिक गणितपर, अल-फलह विश्वविद्यालय, फरीदाबाद सूफी सिद्धान्तों और सोनीपतके एसआरएम विश्वविद्यालयमें आयुर्वेदमें वर्णित औषधीय पौधोंपर शोध किया जाएगा ।
गुरुग्रामके एमिटी विश्वविद्यालयकी ओर ‘मनुष्यके शरीरमें कौशिका स्तर लिपिड्स’के विषयपर, हरियाणा विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालयने ‘पारम्परिक भारतीय भोजन बनानेके प्रौद्योगिकी विज्ञान’ विषयपर, जे.सी बोस विश्वविद्यालय फरीदाबादमें ‘कम्प्यूटरमें प्रयोग होने वाली प्राकृतिक भाषाओं’ और चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानीमें ‘भारत और चीनमें पारम्परिक ढंगसे प्रयोग होने वाली औषधियों’पर शोध किया जाएगा !!
परिषद्के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियालाने बताया कि विश्वविद्यालयोंका मुख्य कार्य शिक्षाके साथ-साथ नए ज्ञानका सृजन भी है । परिषद विश्वविद्यालयोंमें मानवीय व सामाजिक समस्याओंके समाधान ढूंढनेके प्रयासपर केन्द्रित रहेगा । उन्होंने कहा कि जिन विश्वविद्यालयोंने शोध विषयका चयन नहीं किया है, उनसे भी आग्रह किया गया है कि वे शीघ्र ही इस विषयमें प्राध्यापक वर्गसे परामर्श करके निर्णय लें । उन्होंने बताया कि परिषदने प्रांतके सभी विश्वविद्यालयोंसे आग्रह किया है कि वे आधुनिक प्रासंगिकता वाले कमसे कम एक विषयपर ग्रन्थ प्रकाशित करें । उन्होंने बताया कि २४ विश्वविद्यालयोंने अपने-अपने शोध करने बारे जानकारी दी है ।

 

“प्राचीन ज्ञान-विज्ञानको पुनर्जीवित व छात्रोंमें अवरोपण हेतु हरियाणा शासनका यह निर्णय प्रशंसनीय है । हमारा प्राचीन ज्ञान या तो विलुप्त हो चुका है या ग्रन्थोंमें संग्रहित है, जिससे जानने और समझनेके लिए शोधकी आवश्यकता है । दुखद है कि स्वतन्त्रताके पश्चात तथाकथित लोकतन्त्रके विधर्मी शासनतन्त्रने हिन्दुओंके महाज्ञानको प्रसारित करने हेतु कुछ नहीं किया । बडे-बडे संस्थान आइआइटी, आइआइएम खोल दिए गए, परन्तु वहां भी मैकॉले शिक्षा आधारित ज्ञान ही रटाया गया, जिससे चाकर तैयार हो सके !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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